Birthday special: आज भी दुनियाभर में बरेली की पहचान को समृद्ध कर रही राधेश्याम की 'रामायण'
पंडित राधेश्याम की लिखी रामायण में तुलसीदास के द्वारा रचित रामचरित मानस का रस भी है और रुहेलखंड की लोक पहचान पहचान भी। यही वजह है कि दुनियाभर में बरेली की पहचान को राधेश्याम रामायण समृद्ध कर रही है।
बरेली (अंकित शुक्ला) : खड़ी बोली के साथ लोक नाट्य शैली, इससे सहज और कुछ नहीं हो सकता। इसी से पंडित राधेश्याम की लिखी रामायण गली-गली, शहर-शहर तक पहुंची। जिसमें तुलसीदास रचित रामचरित मानस का रस भी है और रुहेलखंड की लोक पहचान पहचान भी। यही वजह है कि तब से लेकर आज तक, हर पीढ़ी ने उन्हेंं और उनकी लिखी रामायण को आत्मसात किया।
25 नवंबर, 1890 को अपने शहर में जन्मे पंडित राधेश्याम कथावाचक के बारे में रंगकर्मी अस्मिता बड़ी गंभीरता से चर्चा करती हैं। कहती हैं कि उनकी लिखी 'राधेश्याम रामायण' और नाटक आज भी मंच पर जीवंत हैं। वह विंडरमेयर में रामायण मंचन में माता सीता का किरदार निभाती हैं। उसी मंचन में राम का किरदार निभाने वाले दानिश कहते हैं कि पारसी शैली में गायन विधा पर लिखी गई राधेश्याम कथावाचक की रामायण युवाओं के बीच अधिक प्रचलित इसलिए है, क्योंकि पढऩे, समझने में सहज है।
चित्रकूट महल से शुरू हुआ सफर
राधेश्याम कथावाचक बिहारीपुर में रहते थे। उनकी पौत्री शारदा भार्गव बताती हैं कि बचपन में उनके घर के पास ही चित्रकूट महल था, जहां नाटक कंपनियों के लोग आकर रुकते थे। जब वह रिहर्सल करते थे तो राग-रागिनियां उनको काफी प्रभावित करती थीं इसलिए वहां पहुंच जाते थे। हारमोनियम बजाना एवं गीत गाना उन्होंने वहीं से सीखा। पिता के सानिध्य में उनकी कलाओं को विस्तार मिला। जब उनके पिता कथा कहने जाते, तो वह भी साथ हो लेते। वह गीत गाते तो उनके पिता बाद में उसका अर्थ बताते। अपनी लगन के दम पर रामगोपाल से वह राधेश्याम कथावाचक बन गए। शारदा भार्गव बतातीं हैं कि पंडित जी खाने-पीने से लेकर हर चीज को गाकर ही बोलते थे। जिसे मां के साथ ही उनकी पत्नी, रसोइया आदि भी अच्छे से समझते थे।
57 पुस्तकें लिखींं
पंडित राधेश्याम कथावाचक ने अपने जीवनकाल में 57 पुस्तकें लिखीं एवं 150 से अधिक का संपादन किया। 'राधेश्याम रामायण' के बाद सबसे अधिक ख्याति उनके वीर अभिमन्यु नाटक को मिली। इस नाटक का मंचन देखने कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद से लेकर पंडित मोतीलाल नेहरू और सरोजनी नायडू बरेली आईं थीं। राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत इस नाटक का मंचन जब उस वक्त की मशहूर न्यू अल्फ्रेड कंपनी ने देशभर में किया तो अंग्रेजी हुकूमत ने इसे बगावत मानकर उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला शुरू करा दिया। पंजाब एजुकेशन बोर्ड ने इसे अपने पाठ्यक्रम में भी शामिल किया। भक्त प्रहलाद नाटक में पिता के आदेश का उल्लंघन करने के बहाने उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन का सफल संदेश दिया।
प्रमुख नाट्य कृतियांं
वीर अभिमन्यु, श्रवण कुमार, परमभक्त प्रह्लाद, परिवर्तन, श्रीकृष्ण अवतार, रुक्मिणी मंगल, मशरिकी हूर, महॢष वाल्मीकि, देवॢष नारद, भारत माता, सती पार्वती, भूल भुलैया आदि।
संस्करणवार समृद्ध हुई राधेश्याम रामायण की भाषा
अमेरिका स्थित यूनिवॢसटी ऑफ नार्थ कैरोलिना की एसोसिएट प्रोफेसर पामेला लोथस्पाइच ने उनके काम पर काफी शोध किया। 1939-1959 के बीच आए राधेश्याम रामायण के संस्करणों का गहन अध्ययन किया। 1959-60 में प्रकाशित संस्करण में करीब-करीब सभी शुद्ध हिंदी के शब्दों का प्रयोग किया गया। पीलीभीत, बीसलपुर, पूरनपुर आदि स्थानीय कस्बों सहित बिहार के दरभंगा एवं ब्रज क्षेत्र के रामलीला कलाकार राधेश्याम रामायण से संवाद लेते हैं।
विरासत में पंडित जी को मिली थी कला
वरिष्ठ रंगकर्मी जेसी पालीवाल ने बताया कि वह मूलत: कथावाचक थे। यह प्रतिभा उनको विरासत में मिली थी। वह जनकवि थे। उनके नाटक भी अधिकांश गायन शैली में ही है।
कई गीत लिखे
पंडित राधेश्याम कथावाचक पर शोध करने बरेली के रामपुर गार्डन निवासी डा. दीपेंद्र कमथान बताते हैं कि 1931 में आयी फिल्म शंकुतला, 1935 में श्री सत्यनारायण, 1937 में खुदाई खिदमतकार, 1940 में ऊषाहरण (कथालेखन), 1953 में झांसी की रानी, 1957 कृष्णा-सुदामा फिल्मों के गीत लिखे। झांसी की रानी फिल्म के गीत लिखने पर फिल्म के डायरेक्टर व प्रोड्यूसर सोहराब मोदी ने उन्हेंं मेहनताना देने की पेशकश भी की थी। जिसे पंडित जी ने ठुकराते हुए निश्शुल्क गाने लिखे।
बनारस स्टेशन पर कथा सुनाने के लिए खड़ी रही थे ट्रेन
राधेश्याम कथावाचक के स्वजन बताते हैं कि एक बार वह बनारस गए थे। जहां ट्रेन लेट होने के चलते वह स्टेशन मास्टर के कमरे में गए और सामान रखने की बात कही। स्टेशन मास्टर ने उन्हेंं पहचान लिया, कथा सुनाने को कहा। इस पर उन्होंने स्टेशन पर ही कथा का गायन शुरू कर दिया। इसी बीच ट्रेन आ गई, मगर आगे नहीं बढ़ी। कथा खत्म होने के बाद ट्रेन रवाना की गई। तब तक यात्री भी उस कथा को सुनने के लिए उतर आए थे।