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सामाजिक आदोलन में परिवर्तित करें भीड़ की उग्रता

जेएनएन, बरेली। जनसंख्या तेजी से बढ़ने पर हर देश के सामने समस्याएं आती हैं। संसाधनों की कमी और

By JagranEdited By: Published: Tue, 24 Jul 2018 12:01 PM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 03:53 PM (IST)
सामाजिक आदोलन में परिवर्तित करें भीड़ की उग्रता
सामाजिक आदोलन में परिवर्तित करें भीड़ की उग्रता

जेएनएन, बरेली। जनसंख्या तेजी से बढ़ने पर हर देश के सामने समस्याएं आती हैं। संसाधनों की कमी और बेरोजगारी बढ़ने से देश के आर्थिक व सामाजिक विकास में गिरावट आती है। मगर आबादी को शिक्षित कर सामाजिक व तकनीकि रूप से दक्ष बनाया जाए तो ये देश के विकास में मददगार साबित हो सकती है। मौजूदा समय में चीन इसका उदाहरण है। वहीं, भारत में बढ़ते जनसंख्या दबाव के सापेक्ष इस चीज की कमी दिखाई देती है। इसके अलावा पाश्चात सभ्यता के अनुसरण और बढ़ती जरूरतों ने हमारे सामाजिक तानेबाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। हा, एक बात और. भीड़ के आएदिन उग्र होने की जो सबसे बड़ी वजह है, वह है हमारे देश के सरकारी सिस्टम की उदासीनता। जिसके चलते आज भी अधिकाश जनता को मूलभूत सुविधाओं के लिए हर रोज संघर्ष करना पड़ता है। इससे उनमें एक रोष पनपता रहता है, जो कई बार दूसरे मुद्दों पर फूटकर बाहर आ जाता है। और पूरे समाज को शर्मसार करता है। इसलिए भीड़ की ¨हसा रोकने के लिए उसके रोष को सामाजिक आदोलन में परिवर्तित करना बेहद आवश्यक है। ये बातें सोमवार को भीड़ की ¨हसा पर कैसे लगे लगाम? विषय पर आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में बरेली कॉलेज के पर्यावरण विभाग के हेड डॉ. एपी सिंह ने कहीं। -- .और टूटता चला गया सामाजिक तानाबाना :

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डॉ. सिंह ने बताया कि पहले जनसंख्या कम थी। अधिकाश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती थी। संयुक्त परिवार हुआ करते थे। घर के बड़े लोगों से नई पीढ़ी व युवाओं को संस्कार मिलते थे। गाव में भीड़ वाले स्थानों पर भी छोटे-बड़े का लिहाज होता था। मगर बढ़ते शहरीकरण और पश्चिमी सभ्यता के अनुसरण से हमारा सामाजिक तानाबाना टूटता चला गया। शहरों में एकल परिवार में रहने वाले लोगों में दूसरों के सुख-दुख जानने से जो सेंस उत्पन्न होता था, वह गायब होता चला गया। -- राजनीतिक फायदे के लिए होने लगा इस्तेमाल :

डॉ. सिंह बोले कि पहले समय में भीड़ जायज मुद्दों के लिए सामाजिक आदोलन किया करती थी। कई बार इससे समाज में बड़े परिवर्तन भी हुए। यह पॉजीटिव मॉब हुआ करता था, लेकिन अब राजनीतिक लाभ के लिए निगेटिव मॉब एकत्रित की जाती है। जो आएदिन हिंसक रूप धारण कर लेती है। -- सिस्टम की अनदेखी बना रही मॉब : डॉ. सिंह ने बताया कि सरकारी सिस्टम की उदासीनता से तेजी से मॉब बन रही है। जनता को छोटे-मोटे कामों के लिए महीनों तक सरकारी कार्यालयों में चक्कर लगाना पड़ता है। वहीं, कई बार बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए लोगों को सड़कों पर उतरकर हंगामा करना पड़ता है। क्योंकि सरकारी सिस्टम से लोगों का कम्यूनिकेशन गैप बढ़ता जा रहा है। यदि समस्या आने पर सरकारी अधिकारी उन्हें पहले से ही अवगत करा दें या कब तक समस्या हल हो जाएगी। इसकी जानकारी दे तो भीड़ को उग्र होने की आवश्कता ही नहीं पड़ेगी।


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