दैनिक जागरण के फोरम पर बाेले शिक्षाविद, सपने पूरे करने है ताे शार्टकट का रास्ता छोड़ सही रास्ता अपनाएं छात्र
Dainik Jagran Forum दैनिक जागरण के 33 वें स्थापना दिवस पर आयोजित फोरम में शुक्रवार को शिक्षाविद शामिल हुए। उन्होंने स्मार्ट होते बरेली की शिक्षा व्यवस्था कैसी हो विषय पर चर्चा की। बनाएं सपनों की बरेली विषय पर सभी ने अपने सुझाव दिए।
बरेली, जेएनएन। Dainik Jagran Forum : दैनिक जागरण के 33 वें स्थापना दिवस पर आयोजित फोरम में शुक्रवार को शिक्षाविद शामिल हुए। उन्होंने स्मार्ट होते बरेली की शिक्षा व्यवस्था कैसी हो विषय पर चर्चा की। बनाएं सपनों की बरेली, विषय पर सभी ने अपने सुझाव दिए। बताया कि किस तरह तरक्की के सपने को पूरा किया जा सकता है। छात्रों को शार्टकट का रास्ता छोड़कर सही रास्ता अपनाना चाहिए। दिशाहीन छात्र अपना रास्ता बदल सही रास्ते में वापस लौटे और मेहनत करें। सत्या नडेला हो या सिलिकान वैली के 30 प्रतिशत भारतीय है। अमेरिका में 50 प्रतिशत डाक्टर भारतीय है। विदेशों की 70 प्रतिशत कंपनी के सीईओ भारतीय है। बदलाव के लिए रोजगार परक शिक्षा की ओर हमें आगे बढ़ना होगा। या तो आप परिवर्तन करने वाले बनिए या फिर परिवर्तन के साथ चलने वाले बनना होगा।
बरेली कालेज में भौतिक विज्ञान के विभागाध्यक्ष डा. वीपी सिंह ने अपने आधार भाषण से फोरम का जो खाका खींचा। उन्होंने संस्कार युक्त, राष्ट्रीयता से ओतप्रोत उच्च शिक्षा की वकालत की। उनका मानना है कि विद्यार्थी को आजीविका की चिंता नहीं होनी चाहिए। यदि ज्ञान है तो रास्ता बन ही जाएगा। शिक्षा की गुणवत्ता को सही करने के लिए छात्रों की संख्या के मुताबिक ही शिक्षकों की संख्या हो। जिससे गुणवत्ता दुरुस्त होगी।
अच्छे नागरिक के निर्माण में महाविद्यालय की भूमिका विषय पर वीरांगना अवंतीबाई लोधी राजकीय महिला महाविद्यालय की प्राचार्य डा. मनीषा राव ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि आज कल शिक्षा का उद्देश्य जीविकोपार्जन हो गया है। यह नहीं होना चाहिए। नई शिक्षा नीति में कई ऐसी चीजें आई हैं जो कि छात्रों के लिए बहुत अच्छा है। बच्चे को उसके मनमुताबिक विषय पर आगे ले जाना चाहिए।
क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी संध्या रानी की जगह उनका प्रतिनिधित्व करते हुए डा. रंजू राठौर ने कहा कि अनुशासन के बिना कोई छात्र अच्छा इंसान नहीं बन सकता है। इसलिए जरूरी है कि छात्रों को अनुशासन का पाठ ठीक से पढ़ाया जाए। उन्होंने शिक्षकों को छात्रों के साथ अभिभावक जैसे संबंध बनाने की नसीहत देते हुए कहा कि हमें छात्रों के दुख-दर्द और समस्याओं से भी वाकिफ होना चाहिए, तभी बेहतर तालमेल बन पाएगा। विद्यालयों को बच्चों से कनेक्टिविटी बढ़ानी होगी। नई शिक्षा नीति बहुत अच्छी है, लोग उससे कनेक्ट नहीं हो पाए हैं। इसके लिए बच्चों को कनेक्ट कर उन्हें इसके बारे में बताना चाहिए।
साहू रामस्वरूप महिला महाविद्यालय में शिक्षा शास्त्र की विभागाध्यक्ष डा. राधा यादव ने क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग कोर्स और कार्यक्रमों की शुरुआत की जा रही है। नेशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर और राष्ट्रीय शिक्षा तकनीकी फोरम सार्थक पहल के तौर पर हैं। उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण के संदर्भ में दिशा-निर्देश सहित आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत है। प्राइमरी से इंटरमीडिएट तक बच्चे को प्राइवेट जबकि उसके ऊपर हायर एजूकेशन में सरकारी विद्यालयों में प्रवेश के लिए संघर्ष करते हैं।
बरेली कालेज के समाजशास्त्र के डा. योगेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि शिक्षा नीति में छह प्रतिशत जीडीपी का खर्च होना चाहिए, लेकिन सरकार कितना खर्च कर रही है। यह किसी से छुपा नहीं है। इसके अलावा जिले में हो रहे व्यापार का डेटा होना चाहिए। जिससे महाविद्यालयों को मालूम हो कि किस उद्यम के लिए किस तरह की शिक्षा की आवश्यकता है।
बरेली कालेज के अंग्रेजी विभाग की डा. चारू मेहरोत्रा ने बताया कि अधिकांश बच्चे बाहर शिक्षा लेना चाहते हैं। इसके पीछे देखा जाए तो इंफ्रास्ट्रक्चर व सिस्टम की कमी होना है। जबकि बाहर के कालेजों में यह व्यवस्थाएं दी गई है। दिल्ली की ओर लोग जाना पसंद कर रहे हैं। जबकि बरेली में भी यह व्यवस्था हो सकती है। इस पर काम किया जाना चाहिए। बाहर छात्रों की संख्या कम होने पर भी शिक्षकों को सुविधाएं दी जाती है। जबकि हमारे पास छात्रों की संख्या अधिक होने के बाद भी इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। यह भी कारण है कि बच्चे बाहर पलायन कर रहे हैं। पहले बरेली उद्योग नगरी था। अब पुराने उद्योग भी बंद हो गए हैं। इसके लिए कुटीर उद्योग को भी बढ़ावा देना चाहिए।
ओमेगा क्लासेज के डायरेक्टर मोहम्मद कलीमुद्दीन ने कहा कि स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें चलना चाहिए। प्रतियोगिताओं में एनसीईआरटी किताबों से ही पूछा जाता है। अभिभावकों को भी यह चाहिए कि अपने बच्चे की किसी विशेषज्ञ से काउंसिलिंग कराएं कि अपने बच्चे को किस लाइन में भेजना है। जो कि स्मार्ट एजुकेशन का एक पार्ट है।
भारतीय प्रबंधन संस्थान आइआइएम काशीपुर के विशेषज्ञ डा. मनीष शर्मा ने बताया कि बीएससी, बीकाम व बीए करने वालों को हम रोजगार नहीं दे पाए। रुविवि में रिसर्च के लिए लैब हैं। बीएल एग्रो में अभी तक केवल एचबीटीयू के ही छात्र लिए जाते थे, लेकिन रुविवि अब इस पर काम करने जा रहा है। जिससे यहां के छात्रों को यहीं रोजगार मिलेगा। कहीं न कहीं इंटरमीडिएट शिक्षा पर भी बदलाव की जरूरत है। सरकार के पास फंडिंग के लिए प्राइवेट सेक्टर हैं।
बरेली में आइटी पार्क सेंक्शन हैं। जिस पर सरकार काम भी कर रही है। डेटा रिफाइनरी पर भारत सरकार भी काम करना चाहती है। सभी महाविद्यालयों में कंप्यूटर साइंस में छात्रों की कमी नहीं है। रोजगार परक शिक्षा की ओर हमें आगे बढ़ना होगा। साइंस पार्क जल्द डेवलप होना चाहिए। जिससे लोगों को इसका लाभ मिल सके। इंडस्ट्रीज के अंदर जरूरत हैं, लेकिन उसमें काम करने वाले लोगों की कमी है। बहुत बड़े परिवर्तन की जरूरत है। एयरपोर्ट बरेली के लिए रोजगार व अच्छी शिक्षा लेकर आया है। जल्द ही बरेली में अच्छी यूनिवर्सिटी होंगी। जो कि टाप थ्री में शामिल होगी।
बरेली कालेज से समाजशास्त्र के डा. अमित चिकारा ने बताया कि हमें शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। समाज के लिए हर प्रकार की शिक्षा का होना आवश्यक है। जरूरी है कि स्नातक के कोर्स के लिए प्रवेश एंट्रेस के जरिए हो। बच्चे को बहार का माहौल यहां मिले। ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए। निजी विद्यालयों का इंफ्रास्ट्रक्चर ही केवल अच्छा है। जबकि शासकीय विद्यालयों में शिक्षक आयोग द्वारा चयनित व अच्छी शिक्षा लेकर आए हुए हैं। लेकिन लोगों के दिमाग में हैं कि शासकीय विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती, उसे बाहर निकालना होगा। जितनी जानकारी शिक्षक की है उतनी ही जिम्मेदारी अभिभावकों भी हैं।
बरेली कालेज से समाजशास्त्र के डा. तेजवीर सिंह ने बताया कि अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा का विकास हो, यह जरूरी नहीं है। हम अपनी मातृभाषा में बच्चों को शिक्षित करें वह ज्यादा बेहतर हैं। आज शिक्षा का ज्ञान दिया नहीं बल्कि उसे बेचा जा रहा है। शिक्षा बहुआयामी है व बहुमुखी है। बच्चे को जिस ओर जाने में रूचि है उसे उसी दिशा में बढ़ाना होगा। छात्रों का ध्यान एमटेक, बीटेक आदि पर अधिक होता है। जबकि छात्रों को स्थानीय शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए। एक जिला एक उत्पाद सभी सफल होगी जब स्थानीय शिक्षा को महत्व दिया जाएगा।
बरेली कालेज से समाजशास्त्र के डा. आनंद विद्यार्थी ने बताया कि कला संकाय में अधिकांश छात्र स्वयं से ही पढ़ने व कालेज आदि में जाने की जरूरत न होने की बात को दिमाग में बैठाए हैं, उसे निकाला जाना जरूरी है। विश्वविद्यालय अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए शासन को इसके लिए कुछ फ्रीडम देनी चाहिए। विवि को चाहिए कि कौन से कोर्स चलाने चाहिए जिससे दूर-दूर से छात्र उसे पढ़ने आए। अच्छे संस्थानों की मदद करनी चाहिए।
खंडेलवाल कालेज से राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि कोरोना ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। 85 प्रतिशत शिक्षा सेल्फ फाइनेंस पर आधारित है। जो कि अच्छी से अच्छी शिक्षा दे रहा है उस पर सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही। 15 प्रतिशत जो कि शासकीय है उस पर सरकार जो खर्चा कर रही है उसकी स्थिति बहुत ही खराब है।