जागरण परिचर्चा : ग्राहक कम हुए, टैक्स ने भी बढ़ाई उलझन Bareilly News
शहर के साड़ी-कपड़ा कारोबारियों के साथ हुए संवाद में उनकी परेशानी सामने आई। बोले कि ऑनलाइन खरीदारी के कारण 50 से 60 फीसद कारोबारी प्रभावित हैं।
बरेली, जेएनएन : पूरे मंडल और उत्तराखंड के कई जिलों तक साड़ी बाजार माल सप्लाई करने वाले बरेली के बाजार के हाल ठीक नहीं बताए जा रहे। कारोबारियों का कहना है कि जीएसटी लगने के बाद कागजी खानापूर्ति इतनी ज्यादा बढ़ गई कि व्यापारी उसी में उलङो रहते हैं। बाकी ऑनलाइन मार्केट ने भी स्थानीय बाजार को काफी प्रभावित किया है। मंदी जैसे हालात होने की बात पर कहते हैं कि चालीस फीसद तक कारोबार गिर गया है। लोगों की खर्च करने की क्षमता काफी घट गई है।
दैनिक जागरण कार्यालय में बुधवार को जुटे शहर के साड़ी-कपड़ा कारोबारियों के साथ हुए संवाद में उनकी परेशानी सामने आई। बोले कि ऑनलाइन खरीदारी के कारण 50 से 60 फीसद कारोबारी प्रभावित हैं। बाजार से कैश एकदम गायब हो गया है। सरकार कोई भी छूट नहीं दे रही है। यह बाजार कैश पर अधिक निर्भर रहा है। पहले अगर बाजार में कोई परिवार पांच साड़ियां लेने आता था तो आज वह सिर्फ दो ही साड़ियां ले जा रहा है। सर्विस क्लास तो कार्ड से भुगतान करता है, लेकिन बिजनेस क्लास आज भी नकद पर ही खरीदारी करता है। नकदी की कमी से उसकी क्षमता निश्चित तौर पर कम हुई है, जिसका असर बाजार में दिखाई दे रहा है।
आगे छंटनी की भी आशंका
कारोबारियों की माने तो फिलहाल वह किसी तरह अपने कारोबार का अस्तित्व बचाने के लिए काम कर रहे हैं। तमाम लोग उनकी दुकानों पर काम में लगे हैं। उनके परिवार उसी से चल रहे हैं। साल भर में चार महीने बाजार काफी हल्का रहता है। आठ महीने बाजार तेज होता है। ये सहालग व तीज-त्योहार के मौके होते हैं जब ग्राहक बाजार में जमकर उमड़ता है। इस बार कारोबारियों की निगाह नवरात्र की ओर है। अगर ग्राहक बाजार में आता है तो व्यापार को चलाया जा सकेगा। अगर ग्राहकों ने निराश किया तो कारोबार मंदी की ओर बढ़ जाएगा। ऐसे में कारोबारियों के आगे भी अपने स्टाफ की छंटनी करने के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं होगा। कारोबार में कई कामगार वर्षो से लगे हैं। लंबे अनुभव के कारण उन्हें अच्छा वेतन भी मिलता है। अगर छंटनी हुई तो उन्हें काफी नुकसान होगा।
साड़ियों का संसार पारंपरिक
बड़ा बाजार, आलमगीरीगंज, साहूकारा और आर्य समाज गली। ये वह स्थान हैं जो दूर दराज जिलों तक साड़ी व कपड़ा बाजार के नाम से पहचाने जाते हैं। बीस हजार से ज्यादा कर्मचारी यहां काम करते हैं, दो सौ से ज्यादा होलसेलर यहां के बाजार को दम दे रहे। हालांकि अब तस्वीर कुछ धुंधली हो रही।
कारोबारियों का मानना है कि साड़ियों का बाजार हमेशा से पारंपरिक रहा है, लेकिन बीते कुछ वर्षो में वेस्टर्न कल्चर काफी बढ़ा है। महिलाओं का पहनावा बदल रहा है। पार्टी में जाने को साड़ी नहीं अब गाउन आ गया है। घर में भी साड़ी की जगह कुर्ता-पैजामा या अन्य परिधानों ने ले ली है। ऑनलाइन खरीदारी ने बाजार पर खासा प्रभाव डाला है। खरीदार सहूलियत देख रहा है कपड़े की क्वालिटी नहीं। ऐसे में यहां का बाजार भी प्रभावित हो रहा। कारोबारी कहते हैं कि पहले कपड़े पर कोई टैक्स नहीं था। जीएसटी आने के बाद उस पर टैक्स भी लगा दिया गया है। व्यापारी टैक्स देने को तैयार है, लेकिन उसे देने के लिए जरूरी औपचारिकताओं में उलझ गया है। उसे अब अपना कंप्यूटर, वकील भी रखना पड़ रहा है। हिसाब-किताब में ही समय बीत रहा है।
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खत्म होने के कगार पर पहुंचा जरी-जरदोजी
इन सितारों में चमक तो है मगर इतनी नहीं कि रात का अंधेरा दूर हो सके। जरी-जरदोजी का काम करने वाले हुनरमंद हाथों के लिए जिंदगी की काली रातों की कोई सुबह नहीं हुई अब तक। बरेली में जरी-जरदोजी के व्यापार का आंकड़ा सुनेंगे तो चौक जाएंगे..। यह सालाना 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के टर्नओवर वाली कथित इंडस्ट्री है मगर पूरी तरह बदहाल, बर्बाद और बिखरी हुई। जरी उद्योग कितना पुराना और व्यापक है इसका अंदाजा यहां लगे कामगारों की संख्या से होता है। पुरुष, महिलाएं और बच्चे समेत करीब पांच लाख लोग इस पेशे से जुड़े हैं। यह पूरा काम हाथ की दस्तकारी का है। कपड़ों पर सितारों, मोतियों और रेशमी धागों को पिरोकर उनमें चार चांद लगाए जाते हैं। इसके बावजूद जरी-जरदोजी उद्योग की शक्ल नहीं ले सकी। कामगार आज भी गरीब है। कारखानेदार व्यापारियों के हाथों पिस रहा है।
कारोबारियों ने कहा
ऑनलाइन शॉ¨पग ने कपड़ा व साड़ी के कारोबार को काफी नुकसान पहुंचाया है। इस कारण बाजार में ग्राहक आना बहुत कम हो गए हैं। कारोबारी परेशान हैं। - अंकुर गुप्ता, गौरी साड़ीज
बिजनेस क्लाज आज भी नकद खरीदारी करता है। उसे विलासिता की कई चीजें आसानी से फाइनेंस पर मिल रही है। उन्हीं की किश्त दे रहा है। - विकास कपूर, गोपाल संस
कपड़े का ट्रेंड बदल रहा है। लोग सहूलियत के लिए गुणवत्ता से भी समझौता कर रहे हैं। कारोबारियों को बचता था, अब वह सरकार के पास जा रहा है। छूट मिलनी चाहिए। - संजीव साहनी, भाभी जी साड़ीज
जीएसटी ठीक है लेकिन उसे सही तरीके से लागू नहीं कराया जा रहा है। कारोबारियों का बहुत ज्यादा टैक्स देना पड़ रहा है। व्यापारियों में भय की स्थिति बनी हुई हैं। - कुलजीत सिंह बेदी, बेदी फैशन स्टोर
ग्राहक के पास पैसा नहीं है। एक ग्राहक कई साड़ियां ले जाता था, वहां गिनती चंद में पहुंच गई है। बाजार में करीब चालीस फीसद बिक्री कम हुई है। कारोबारी परेशान हैं। - महेंद्र अग्रवाल, साड़ी म्यूजियम
कारोबारियों के सामने इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने की भी समस्या आ रही है। बिलिंग पूरी होने पर भी विभाग की ओर से नोटिस आ रहे हैं। टैक्स की व्यवस्था सरल हो। - महेश अग्रवाल, श्री महालक्ष्मी साड़ी सेंटर
कारोबार में निश्चित तौर पर जीएसटी व अधिकारी का भय है। आने वाले समय में बाजार ठीक नहीं हुआ तो छंटनी निश्चित है। - अनुपम कपूर, श्री सिद्धी विनायक साड़ीज
कपड़ा बाजार जीएसटी के बाद से ही मंदी के दौर से गुजर रहा है। जिन लोगों ने व्यापार की नींव रखी थी, जीएसटी के कारण कइयों के कारोबार खत्म हो गए। - केतन साहनी, बहुरानी साड़ी
साड़ी-कपड़े का काम सीजनल है। जीएसटी के कारण मंदी ज्यादा दिखाई दे रही है। छोटे दुकानदार परेशान हैं। कागजी कार्रवाई ही पूरी नहीं कर पा रहे हैं। - बनवारी मोहता, जगदम्बा टैक्स फैब
जीएसटी ने कारोबारियों की टेंशन बढ़ा दी है। अनावश्यक पेपर वर्क बढ़ गया है। उसी में लगकर कारोबारी परेशान है। कारोबार को आगे बढ़ाने की सोच भी नहीं पा रहा। - प्रवीन सिंह बेदी, बेदी फैशन