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बच्चे का रोना, चिल्लाना जारी है तो बचपना नहीं बीमारी है

कुछ बच्चे गालियां देने लगते हैं जिन्हें हंस कर टाल दिया जाता है। आपके बच्चों में भी ऐसे लक्षण दिखें तो आप सतर्क हो जाएं क्योंकि यह आदत बचपना नहीं बल्कि बीमारी है। जिसे ओडीडी कहते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 03:40 AM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 03:40 AM (IST)
बच्चे का रोना, चिल्लाना जारी है तो बचपना नहीं बीमारी है
बच्चे का रोना, चिल्लाना जारी है तो बचपना नहीं बीमारी है

बरेली, जेएनएन : रोकर, चिल्लाकर, गुस्सा करके अपनी बात मनवाते हुए आपने बच्चों का अक्सर देखा होगा। इस आदत को लोग अक्सर बचपना मान लेते हैं। कुछ बच्चे गालियां देने लगते हैं, जिन्हें हंस कर टाल दिया जाता है। आपके बच्चों में भी ऐसे लक्षण दिखें तो आप सतर्क हो जाएं क्योंकि यह आदत बचपना नहीं बल्कि बीमारी है। जिसे ओडीडी कहते हैं। ओडीडी मतलब अपोजीशनल डिफाइन डिसआर्डर (नकारात्मक उदंड विकार)। सामान्यत: यह बीमारी पांच से सात साल के बच्चों में होती है लेकिन, बच्चों के विकसित होने के साथ ही यह बीमारी घातक होती जाती है। बच्चों की ओडीडी नामक यह बीमारी किशोरावस्था में कंडक्टर डिसआर्डर और व्यस्क होने पर एंटी सोशल पर्सनालिटी में बदल जाती है। ओडीडी को समझिए

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अपोजीशनल डिफाइन डिसआर्डर (ओडीडी) बच्चों में होने वाली एक मानसिक बीमारी है। यह पांच साल की उम्र के बच्चों में सामने आने लगती है। देखने में सामान्य लगता है लेकिन, इस बीमारी से ग्रसित बच्चे खुद को उम्र से पहले बड़ा समझने लगते हैं। वह बड़ों की तरह ही व्यवहार करते हैं। अपनी बात को मनवाने के लिए गुस्सा करना, रोना, चिल्लाना और कई बार गालियां भी देने लगते हैं। उनकी इस प्रतिक्रिया पर माता-पिता उनकी सही गलत सभी बातों को मान लेते हैं। यह ठीक नहीं है। कोरोना के दौर में बच्चे जब स्कूल नहीं गए और अधिक समय तक घर रहे तो यह बीमारी उभर कर सामने आई है। लोग बच्चों को लेकर मनोचिकित्सकों के पास जा रहे हैं। केस-1 : शहर के पुराना शहर निवासी जावेद अपने दस साले के बच्चे को लेकर मनोचिकित्सक डा. आशीष के पास पहुंचे। बताया कि बहुत जिद करता है, बात न मानी जाए तो गालियां बकने लगता है। बच्चे की काउंसिलिग की जा रही है।

केस-2 : शहर के बिहारीपुर निवासी राहुल का छह साल का बच्चा भी बीते पांच छह महीनों से अधिक चिड़़चिड़ा और गुस्सैल हो गया है। अपनी बात मनवाने को लेकर रोने लगता है। उसकी भी मनोचिकित्सक द्वारा काउंसिलिंग की जा रही है। ये हैं बीमारी के लक्षण

- छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करना।

- बड़ों से बदतमीजी से बात करना।

- उम्र से बड़े बच्चों से दोस्ती करना।

- नकारात्मक आचरण को जल्द ग्रहण करना। अच्छे कार्य करने पर बढ़ाएं मनोबल

अपोजीशनल डिफाइन डिसआर्डर से बच्चों को निकालने के लिए जरूरी है कि समय रहते उनकी बीमारी को समझें। साथ ही मनोचिकित्सक से मिलकर इस पर बात करें। उनकी काउंसिलिग कराएं। जरूरी है कि वह जब अच्छा कार्य करें तो उसे बढ़वा दें और उनके गलत कार्यो पर उन्हें समझाएं। बच्चों को ओडीडी से निकालने के उपाय

- उनकी गलत बात को बिल्कुल न मानें

- उनके रोने या चिल्लाने को बचपना न समझें

- बदतमीजी करने या गालियां देने पर डांटें।

- अच्छे कार्य करने पर उनकी सराहना करें। टाफी, बिस्किट या गिफ्ट देकर प्रोत्साहित करें

- मनोचिकित्सक की सलाह लें और जरूरत समझ आने पर ही एंटी डिप्रेशन दें। वर्जन

कोरोना के दौर में स्कूल, कोचिग बंद हैं। बच्चे अधिक से अधिक समय घर पर बिता रहे हैं। ऐसे में उनमें ओडीडी के लक्षण सामने आ रहे हैं। लाकडाउन हटने के बाद ऐसे कई बच्चे सामने आए, जिनकी काउंसिलिग चल रही है। अभिभावकों को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।

- डा. आशीष सिंह, मनोचिकित्सक।


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