Negligence : एम्स ने मुस्लिम महिला का शव हिंदू परिवार को दिया, दफनाने के बजाय हो गया अंतिम संस्कार
सीबीगंज के धंतिया गांव में रहने वाले शरीफ अपनी बहन का इलाज कराने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले गए थे। वहां उनका इंतकाल हो गया।
बरेली, जेएनएन। सीबीगंज के धंतिया गांव में रहने वाले शरीफ अपनी बहन का इलाज कराने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले गए थे। वहां उनका इंतकाल हो गया। अस्पताल वालों की लापरवाही से उनकी बहन का शव हिंदू परिवार को दे दिया गया। वहीं अंतिम संस्कार हो गया। जबकि हिंदू महिला का शव उन्हें दे दिया गया। कब्रिस्तान में जब उन्होंने चेहरा देखा तो शव बदलने का मामला साबित हुआ। मृतका के स्वजनों ने लापरवाही करने वाले एम्स स्टाफ पर कार्रवाई की मांग की।
सीबीगंज के धंतिया में रहने वाले शरीफ ने बताया कि उनकी बहन को पीलिया और पथरी की समस्या थी। बरेली के तीन बड़े अस्पतालों में इलाज से फायदा नहीं होने पर चार जुलाई को उन्हें दिल्ली के एम्स ले गए थे। भर्ती करने के दो घंटे के अंदर ही उन्हें बताया गया कि बहन को कोरोना संक्रमण है। पांच जुलाई को उनकी हालत बिगड़ी और छह जुलाई की रात 11 बजे मौत हो गई। रात करीब दो बजे उन्हें इस बारे में बताया गया। इसके बाद पीपीई किट देकर कहा कि आरटीओ के पास कब्रिस्तान में इंतजार करो, शव वहीं भेजा जा रहा है।
आखिरी दीदार की कीमत 500 रुपये अदा की। गुरुवार को दिल्ली से गांव लौटे शरीफ ने बताया कि अस्पताल वाहन से सील शव कब्रिस्तान आया। आखिरी बार बहन का शव देखने को कहा तो वाहन में उपस्थित वार्ड स्टाफ ने इन्कार कर दिया। बाद में पांच सौ रुपये लेकर चेहरा खोला। जिसे देखते होश उड़ गए। शव उनकी बहन का नहीं था। यह बात स्टाफ को बताई, वहां से अस्पताल सूचना दी गई। अस्पताल प्रबंधन ने कई घंटे किया गुमराह शरीफ ने बताया कि शव वाहन में उपस्थित स्टाफ व अस्पताल प्रबंधन उन्हें कई घंटे कब्रिस्तान में रोके रहा कि उनकी बहन का शव आ रहा है। वह दफन करने की रस्म पूरी कर सकेंगे।
पांच घंटे बाद भी ऐसा नहीं हुआ तो वह खुद अस्पताल पहुंचे। वहां पता चला कि अस्पताल वालों ने उनकी बहन का शवहिंदूू परिवार को सौंप दिया है। जबकिहिंदू महिला का शव उन्हें दफनाने के लिए दे दिया गया। इस पर एतराज जताया तो अस्पताल स्टाफ ने अभद्रता की। बाद में अस्पताल स्टाफ ने उस हिंदूू परिवार से मालूमात की तो पता चला कि शव का तो अंतिम संस्कार किया जा चुका है। हताश परिवार से जिम्मेदारों ने संपर्क तक नहीं साधा बड़े भाई इश्तियाक खान ने बताया कि अस्पताल स्टाफ की लापरवाही से आखिरी बार बहन का चेहरा तक नहीं देख सके। कंधा नहीं दे सके।
सफदरगंज थाने में तहरीर भी दी मगर मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। एम्स प्रबंधन ने क्या कार्रवाई की, उन्हें नहीं पता। न ही उनसे कोई संपर्क किया गया है। ईमेल से की शिकायत आला हजरत ट्रस्ट के मीडिया कोआर्डिनेटर चंगेज खान को शव बदलने के मामले को पता चला तो उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय और एम्स प्रबंधन को मेल भेजकर इस कृत्य को मसलक के लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला बताया है। उन्होंने इस प्रकरण में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।