Move to Jagran APP

बोली गली : मुर्गे से महंगा हुआ प्याज Bareilly News

अपने वाले प्याज पर महंगाई की ऐसी परतें चढ़ीं कि पहुंच से बहुत दूर हो गया। महीना दो महीना तक इंतजार भी किया मगर कीमतें हाथ नहीं आईं।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Fri, 10 Jan 2020 08:57 AM (IST)Updated: Fri, 10 Jan 2020 08:57 AM (IST)
बोली गली : मुर्गे से महंगा हुआ प्याज  Bareilly News
बोली गली : मुर्गे से महंगा हुआ प्याज Bareilly News

अभिषेक जय मिश्रा, बरेली : अपने वाले प्याज पर महंगाई की ऐसी परतें चढ़ीं कि पहुंच से बहुत दूर हो गया। महीना, दो महीना तक इंतजार भी किया मगर कीमतें हाथ नहीं आईं। मजबूरन देसी तड़के पर तुर्की, अफगानिस्तानी रंग चढ़ाना पड़ा। उम्मीद थी कि दूसरे देशों से प्याज आने के बाद देसी प्याज के भाव गिरेंगे मगर उम्मीदें आंखों के आगे ही तैरती रह गईं। यह सब महसूस करने वाले सैलानी निवासी मोहम्मद सिराज व इकराम तो मानो आस ही छोड़ चुके। उनके शब्दों में सुनेंगे तो दर्द को करीब से महसूस करेंगे- अस्सी रुपये किलो के हिसाब का प्याज खाएंगे तो टमाटर-आलू व अन्य सब्जी कहां से लाएंगे। मुर्गा खरीदना इतना महंगा नहीं लगता जितना महंगा प्याज। आखिर वो कभी-कभार खरीदना होता था मगर प्याज तो रोजाना की जरूरत की चीज है। अब भला करें भी तो क्या। सब्जी छोड़ दीजिए, उसे तो अब सलाद वाली प्लेट से भी बाहर निकलना पड़ गया।

loksabha election banner

कागज की दरकार

नागरिकता वाले कानून का हल्ला क्या मचा, अपनी पहचान साबित करने के कागज तलाशे जाने लगे। मिले तो राहत की सांस, नहीं तो एक अदद पहचान पत्र की ख्वाहिश लिए सरकारी कार्यालयों की लंबी लाइनों में लगो। वहां जाकर बताओ कि खुद को बरेली वाला साबित करने के लिए कागज हर हाल में चाहिए। सैलानी रोड पर चाय की दुकान में यह चर्चा चल ही रही थी कि फकीरे चचा ने सबको चुप करा दिया- एक मिनट ठहरो। ये कोई राशन न मिलने वाली समस्या नहीं है। कागज फंस गए तो जवाब देते नहीं बनेगा। पास खड़े भतीजे ने चुटकी ली। कहने लगा- अब तक सुध क्यों नहीं ले रहे थे। कमल वालों ने पुराने कागज तलाशने पर लगवा दिया तो घबराए जा रहे हो। और हां, तुम्हारी इस घबराहट में कागज बनाने वालों की जेब और भारी हो जाएगी। सब्र करो, डर में जेब पर कैंची न चलवा लेना।

लिंटर तो पड़ने दो

बरेली विकास प्राधिकरण वालों के चर्चे इस वक्त गली-गली में हैं। उनके किस्सों की गहराई समझनी हो तो पीलीभीत बाईपास और बदायूं रोड पर निकल जाइए। वहां मकान बनवा रहे लोगों से बस इतना पूछ लीजिए- क्या प्राधिकरण वाले यहां आए थे। जवाब में आपको ऐसे-ऐसे किस्से मिलेंगे जो बहुत कुछ बयां कर जाएंगे। बदायूं रोड पर मकान बनवा रहे एक शख्स ने प्राधिकरण के काम को खूब ठीक से महसूस किया। बोले, मकान बनता रहा, दीवारें खड़ी होती गईं मगर कोई नहीं आया। जिस दिन लिंटर डालकर मजदूर वापस हुए, कुछ ही घंटे बाद टीम आ गई। मानो इसी बात का इंतजार हो। कागज, नक्शा मांग लिए। भला मुङो क्या पता कि इतने कागज चाहिए, हैरत जाहिर की तो जवाब आया। सफेद कागज न होने की पूर्ति रंगीन-गुलाबी कागज के टुकड़ों से करा दो तो सब कुछ माफ है। वो बताते तो गए, फिर बोले पड़े- नाम मत छापना।

पुलों से बड़ा इंतजार

पुल बनें, बड़ी अच्छी बात है। मगर सिर्फ बनते ही रहें और सालों-साल पूरे न हो पाएं तो सवाल उठना लाजमी है। सैलानी वाली गली के लोग इन्हीं अधबने पुलों पर रोजाना माथापच्ची करते हैं। वजह तलाशते हैं कि देर क्यों हो रही, फिर सेतु निगम वालों को कोसते हुए निकल जाते हैं। उनका सवाल भी ठीक है। जब श्यामगंज वाला पुल एक साल के अंदर बनकर तैयार हो सकता है, वाहन दौड़ने लगते हैं तो आइवीआरआइ, लाल फाटक वाले पुल निर्माण में ऐसी अपेक्षा क्यों न की जाए। सेटेलाइट पुल के काम की गति भी दर्शा रही कि जल्द निर्माण पूरा नहीं होने वाला। हां, एनओसी न मिलने की बात कहकर चेहरा छिपा लेने की आदत बदल डालिए। आखिरकार यह जिम्मेदारी भी तो अफसरों की ही है। सिर्फ बजट, एस्टीमेट, रिवाइज एस्टीमेट और टेंडर-ठेकेदार से आगे निकलकर जनता के बारे में भी फिक्र करके देखिए। पुल जल्द बन जाएगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.