तीन हजार साल पहले भी हुनरमंद थी अपनी बरेली
बरेली का क्षेत्र करीब तीन हजार साल पहले से हुनरमंद है।
जेएनएन, बरेली : कपड़ों पर खूबसूरत कढ़ाई (जरी-जरदोजी) के जरिये देशभर में पहचान बनाने वाला मौजूदा बरेली का क्षेत्र करीब तीन हजार साल पहले से हुनरमंद है। इतिहासकारों को पेंटेड ग्रे वेयर (पीजीडब्ल्यू) चित्रित धूसर मृदभांड सभ्यता में इसके निशान मिले हैं। रुहेला सरदारों का बसाया रुहेलखंड आगे चलकर इसी सभ्यता के सहारे फूला-फला। अभयपुर, गोकलपुर में बर्तनों पर नक्काशी के सुबूत पहले ही मिल चुके हैं। अब भुता के गजनेरा गांव में खोदाई होनी है। इसमें रुहेलखंड के पूर्वजों के हुनर और लाइफ स्टाइल के कई और राज सामने आएंगे।
पेंटेड ग्रे वेयर सभ्यता पर 1940 से शोध चल रहा है। इसका फैलाव उत्तरी राजस्थान से लेकर जम्मू-कश्मीर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक मिल चुका है। अब गजनेरा में भी जमीन की परत-दर-परत छिपे राज जाने जाएंगे।
बर्तनों की नक्काशी से जरी तक
राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश के जिन हिस्सों में पीजीडब्ल्यू सभ्यता मिली है। उन क्षेत्रों में नक्काशी पाई गई। खास बात यह है कि आज भी ये क्षेत्र अपनी इसी कारीगरी के लिए जाने जाते हैं। मसलन, जम्मू-कश्मीर की कढ़ाई की दुनिया कायल है। ऐसे ही बरेली में भी जरी-जरदोजी पाई जाती है। इतिहासकार पूरे दावे के साथ यह तो नहीं कहते कि तीन हजार साल पुरानी जो सभ्यता थी, ये सब उसी के वारिस हैं। इसमें भी संदेह नहीं कि उस दौर की नक्काशी का हुनर आज कढ़ाई के रूप में जीवित है।
गजनेरा में क्या मिलने की उम्मीद
बरेली जिले में गोकुलपुर के बाद जीबीडब्ल्यू सभ्यता के राज जानने के लिए गजनेरा दूसरा स्थान चुना गया है। यहां यह जानने की कोशिश की जाएगी कि अभयपुर से गजनेरा तक लोगों के रहन सहन में क्या बदलाव था। मसलन उनकी जीवनशैली एक जैसी थी।
जनवरी के अंत तक खोदाई
भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग ने रुविवि के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. श्याम बिहारी लाल को खोदाई का लाइसेंस दे दिया है। इतिहास विभाग के डॉ. अनूप रंजन मिश्र बताते हैं कि यह पूरा क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से बेहद समृद्ध है। खोदाई की तैयारी शुरू कर दी है। उम्मीद है कई अहम जानकारियां मिलेंगी। मौजूदा बरेली
मुगल प्रशासक मकरंद राय ने 1537 में इस शहर को बसाया था। जगतपुर यहां का सबसे पुराना क्षेत्र माना जाता है। बाद में इसके आसपास के क्षेत्र पर कब्जा करके रुहेला सरदारों ने रुहेलखंड की स्थापना की। 1774 में अवध के शासक ने अंग्रेजों की मदद से इस इलाके को जीत लिया। 1801 को बरेली का पूरा इलाका ब्रिटिश क्षेत्र में शामिल कर लिया गया और यहां छावनी क्षेत्र स्थापित किया।