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सेहतमंद किलकारी के लिए एनीमिया से जंग लड़ेगा जिला अस्पताल, बनाई ये योजना

एनीमिया की वजह से खुशियां देने वाली किलकारी की जगह सिसकियां न लें इसके लिए जिला महिला अस्पताल में सकारात्मक पहल हो रही है। दरअसल गर्भवती होने पर अगर प्रसूता की सही देखभाल न मिले तो वह एनीमिया की शिकार हो जाती है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Mon, 15 Feb 2021 04:17 PM (IST)Updated: Mon, 15 Feb 2021 04:17 PM (IST)
सेहतमंद किलकारी के लिए एनीमिया से जंग लड़ेगा जिला अस्पताल, बनाई ये योजना
सेहतमंद किलकारी के लिए एनीमिया से जंग लड़ेगा जिला अस्पताल, बनाई ये योजना

 बरेली, दीपेंद्र प्रताप सिंह। Health News : एनीमिया की वजह से खुशियां देने वाली किलकारी की जगह सिसकियां न लें, इसके लिए जिला महिला अस्पताल में सकारात्मक पहल हो रही है। दरअसल, गर्भवती होने पर अगर प्रसूता की सही देखभाल न मिले तो वह एनीमिया की शिकार हो जाती है। एनीमिया ही कई बार जच्चा-बच्चा की मौत का सबब बनता है। अगर किसी तरह जान बच भी जाए तो प्रसव के बाद नवजात पर भी इसका गंभीर असर पड़ता है। अब ऐसा न हो इसके लिए जिला महिला अस्पताल में एनीमिया से ग्रसित प्रसूताओं को एनीमिया का इलाज देने की पहल की गई है जिससे प्रसूता को कोई परेशानी न हो और नवजात की सेहतमंद हो।

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हर तीसरी गर्भवती में खून की कमी

हॉस्पिटल में हर माह करीब 1500 से 1700 गर्भवती महिलाएं भर्ती होती हैैं। प्रसव से पहले मरीज की ब्लड की जांच कराई जाती है। ऐसे में हर तीसरी मरीज में एनीमिया की पुष्टि हो रही है। अगर प्रसव एक दो दिन बाद किया जा सकता है तो प्रसूता को एएनसी वार्ड में भर्ती कर इलाज किया जाता है। अधिकांश मामलों में दो से तीन दिन में प्रसूता का हीमोग्लोबिन बढ़ जाता है।

एएनसी वार्ड में मिल रहा ट्रीटमेंट

जिला महिला अस्पताल में बने एएनसी वार्ड में ऐसे प्रसूताओं को एडमिट किया जा रहा है जिनको जांच में एनीमिया की पुष्टि हो रही है यहां उन्हें आयरन सुक्रोस का इंजेक्शन लगाया जा रहा है। वहीं सीवियर एनीमिक होने पर ब्लड भी चढ़ाया जा रहा है।

अप्रैल से दिसंबर इतना सुधरा ग्राफ

वर्ष 2020-21 की बात करें तो मई में जहां हॉस्पिटल में भर्ती हुई 1000 प्रसूताओं में छह की मौत हुई थी। वहीं दिसंबर में यह आंकड़ा घटकर जीरो पर आ गया है। इस पहल की शुरुआत होने से ही प्रसूताओं को अच्छी केयर के साथ इलाज भी मिल रहा है।

 क्या होता है एनीमिया

गर्भधारण के दौरान अगर प्रसूता को ठीक प्रकार से संतुलित आहार और पोषण नहीं मिलता है तो प्रसूता के शरीर में ब्लड ही भारी कमी हो जाती है, हीमोग्लोबिन कम होने पर डॉक्टर फौरन प्रसूताओं की डिलीवरी नहीं कर पाती है जिससे जच्चा और बच्चा दोनों को जान का खतरा रहता है।

इस पहल से मातृ-शिशु मृत्यु दर में काफी सुधार हो रहा है। वर्ष 2020-21 में मई में जहां हॉस्पिटल में भर्ती हुई 1000 प्रसूताओं में छह की मौत हुई थी। वहीं दिसंबर में यह आंकड़ा घटकर जीरो पर आ गया है।- डॉ.अलका शर्मा, जिला महिला अस्पताल, सीएमएस


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