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बरेली : 40 साल से चल रहे मुकदमे में 38 साल बाद नाबालिग निकला हत्यारा, कोर्ट ने सुनाई ये सजा

Bareilly Sudama Singh Murder Case 40 साल पुराना हत्याकांड। न्यास की आस में 38 साल सुनवाई चली। दोषी की उम्र 56 साल हो गई तब जाकर तय हुआ कि वारदात के वक्त वह नाबालिग था। उसे दो साल के लिए गाजीपुर के वयस्क सुधार गृह भेजा जा चुका है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Sun, 28 Nov 2021 10:18 AM (IST)Updated: Sun, 28 Nov 2021 10:18 AM (IST)
बरेली : 40 साल से चल रहे मुकदमे में 38 साल बाद नाबालिग निकला हत्यारा, कोर्ट ने सुनाई ये सजा
बरेली : 40 साल से चल रहे मुकदमे में 38 साल बाद नाबालिग निकला हत्यारा, कोर्ट ने सुनाई ये सजा

बरेली, जेएनएन। Bareilly Sudama Singh Murder Case : 40 साल पुराना हत्याकांड। न्यास की आस में 38 साल सुनवाई चली। दोषी की उम्र 56 साल हो गई, तब जाकर तय हुआ कि वारदात के वक्त वह नाबालिग था। उसे दो साल के लिए गाजीपुर के वयस्क सुधार गृह भेजा जा चुका है। हालांकि माफी के लिए शनिवार को उसके अधिवक्ता ने कोर्ट में अर्जी लगाई।

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रेलकर्मी सुदामा सिंह की हत्या मामले में किशोर न्याय बोर्ड ने 52 साल की उम्र के किशोर को 2 साल के लिए सुधार गृह भेजा है। अपचारी को गाजीपुर के वयस्क सुधार गृह में रखा जाएगा। वारदात 1981 की है। बिहार के जिला सिवान निवासी दीनानाथ ने अपने साथी रेलकर्मी की हत्या का मुकदमा थाना प्रेमनगर में दर्ज कराया था। वारदात रेलवे लोको कॉलोनी में हुई थी।

आरोप था कि 28 जुलाई 1981 को रेलवेकर्मी सुदामा सिंह पर सहकर्मी गुलजारीलाल, उसके बेटे मदन, वीरेंद्र, रविशंकर और एक रिश्तेदार डोरीलाल ने हमला किया था। सुदामा की पत्नी राधा रानी बचाने दौड़ीं तो उनको भी गंभीर चोटें लगीं। सुदामा सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में धारदार हथियार की छह चोटें सामने आईं। चार गर्दन में, बाकी पेट और टांग में चाकू के वार थे। हत्या के इस केस में सेशन कोर्ट ने करीब 2 साल में जजमेंट सुना दिया। वर्ष 1983 को अदालत ने सभी 5 आरोपितों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

मामला हाईकोर्ट पहुंचा

तब अपील में उठा नाबालिग होने का मुद्दा

हाईकोर्ट में दोषी वीरेंद्र को नाबालिग बताते हुए बचाव पक्ष ने कहा कि वह वारदात के दिन बालिग नहीं था। उसकी जन्मतिथि 1 फरवरी 1965 है। पुलिस ने मामले को मजबूती देने के लिए उसकी एक न सुनी और जबरन बालिग दिखाकर चार्जशीट लगा दी। हाईकोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड से रिपोर्ट तलब की। वीरेंद्र को नाबालिग मानते हुए किशोर बोर्ड ने रिपोर्ट में कहा कि उसकी उम्र वारदात के दिन 16 साल, 5 माह 27 दिन थी।

हाईकोर्ट ने वीरेंद्र पर हत्या के अपराध की पुष्टि करते हुए बाकी दोषियों को सजा से बरी कर दिया। किशोर होने के नाते वीरेंद्र की सजा तय करने के लिए हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 में दोबारा फाइल किशोर न्याय बोर्ड भेजी। किशोर न्याय बोर्ड के प्रधान मजिस्ट्रेट विष्णुदेव सिंह ने वारदात के वक्त के किशोर अपचारी को 2 साल के लिए गाजीपुर सुधार गृह भेजने का आदेश दिया है

सात दिन तक सेंट्रल जेल में रहा बतौर कैदी

प्रधान मजिस्ट्रेट ने अपने निर्णय में कहा कि कानून के मुताबिक अपचारी को 3 साल से अधिक समय तक नहीं रोका जा सकता। अपचारी पूर्व में 4 माह से अधिक जेल में बिता चुका है। अब 2 वर्ष तक ही निरुद्ध रखा जाना न्यायोचित है। अपराध जघन्य किस्म का है। विशेष गृह में रखना अन्य नाबालिगों एवं स्वयं उसके हित में नहीं है। इसलिए अपचारी को 2 साल के लिए गाजीपुर सुधार गृह भेजा जाय।

बोर्ड के निर्णय के खिलाफ अपील

अपचारी वीरेंद्र की सजा के खिलाफ सेशन कोर्ट में अपील दायर की गई है। अपचारी के अधिवक्ता अजय निर्मोही ने कहा कि वादकार पर 40 साल से मुकदमा चल रहा है। वारदात का क्रॉस केस भी दर्ज हुआ था। जिसमें सभी आरोपित बरी हो चुके हैं। अपचारी के 40 वर्ष मानसिक तनाव में बीते हैं। उसका पूरा परिवार भूखों मरने के कगार पर आ गया है। विश्वास है कि अपचारी को अपील में राहत मिलेगी और वह जल्द परिवार के साथ होगा।


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