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257 क्रांतिकारियों के बलिदान का गवाह है बरगद का पेड़

इस समय आखिर पड़ाव पर हूं लेकिन तब मैं युवा था जब भारत मां के 257 लाल मेरी शाखाओं पर ही देश के लिए कुर्बान हो गए थे। उन वीर सपूतों को अपनी शाखाओं पर फांसी के फंदे पर लटका देख मन मेरा भी बहुत रोया था। आज भी मेरी हर शाखा उनके बलिदान की कहानी बयां कर रही। यह शहर उन्हें याद करने के लिए मेरे पास तक पहुंच जाता है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 02:30 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 06:04 AM (IST)
257 क्रांतिकारियों के बलिदान का गवाह है बरगद का पेड़
257 क्रांतिकारियों के बलिदान का गवाह है बरगद का पेड़

बरेली, अंकित गुप्ता: इस समय आखिर पड़ाव पर हूं, लेकिन तब मैं युवा था, जब भारत मां के 257 लाल मेरी शाखाओं पर ही देश के लिए कुर्बान हो गए थे। उन वीर सपूतों को अपनी शाखाओं पर फांसी के फंदे पर लटका देख मन मेरा भी बहुत रोया था। आज भी मेरी हर शाखा उनके बलिदान की कहानी बयां कर रही। यह शहर उन्हें याद करने के लिए मेरे पास तक पहुंच जाता है।

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कमिश्नरी परिसर में लगा पुराना बरगद का पेड़ मानो यही कह रहा था। इसी पेड़ की शाखाओं पर 257 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया था। आजादी की पहली लड़ाई 1857 में शुरू हुई तो रुहेलखंड क्षेत्र में भी क्रांति की लहर दौड़ गई। यहां के युवाओं ने भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। नवाब खान बहादुर खान के साथ पं. शोभाराम समेत अन्य क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकुमत की नींव हिला दी थी। 31 मई 1857 को क्रांतिकारियों ने बरेली से अंग्रेजों का कब्जा हटाकर आजाद घोषित कर दिया था। करीब 10 माह 05 दिन तक बरेली अंग्रेजी हुकुमत से आजाद रहा। इसके बाद 06 मई 1858 को अंग्रेजी सेना ने क्रांतिकारियों को परास्त कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। खान बहादुर खान को कोतवाली के पास फांसी दी गई जबकि 257 क्रांतिकारियों को इसी कमिश्नरी के बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था।

बाद में आजादी की यह जंग विभिन्न चरणों में आगे बढ़ती गई और बरेली के क्रांतिकारी अंग्रेजों से मुचैटा लेते रहे।

मुंशी शोभाराम बने थे वजीर-ए-आजम

बरेली से अंग्रेजों को खदेड़ने के बाद इसे आजाद घोषित कर दिया गया। उस समय खान बहादुर खां ने क्रांतिकारी नेता मुंशी शोभाराम को वजीर ए आजम घोषित किया था। इनके साथ ही भदार अली खां और न्याज मोहम्मद को सूबेदार बनाया गया था।


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