Personality : सात साल की उम्र में तबले की थाप से शुरु हुआ इस कलाकार का सफर शहर को दे रहा पहचान Bareilly News
कला की किसी भी विधा में साधना ही सफलता का मूलमंत्र है। इसे डॉ. शोभारानी कुदेशिया बखूबी जानती हैं और नई पीढ़ी को इससे अवगत भी करा रही हैं।
जेएनएन, बरेली : कला की किसी भी विधा में साधना ही सफलता का मूलमंत्र है। इसे डॉ. शोभारानी कुदेशिया बखूबी जानती हैं और नई पीढ़ी को इससे अवगत भी करा रही हैं। तबला वादन में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी सम्मान पाने वाली शहर की पहली महिला होने का गौरव उनकी सादगी और सरलता में इजाफा ही करता है। उनकी कला साधना अनवरत जारी है। वर्तमान में वह उप्र संगीत नाटक अकादमी की सदस्य हैं, जिसके माध्यम से वह स्कूली स्तर पर संगीत क्षेत्र में आई विसंगतियों को दूर करने को प्रयासरत हैं। उनका प्रयास है कि यूपी बोर्ड में हाईस्कूल में संगीत में फिर से प्रैक्टिकल विषय के रूप में शुरू हो, जिससे छात्र-छात्राओं का रुझान फिर से इस ओर हो।
सात वर्ष आयु से की तबले की शुरुआत
मूल रूप से बरेली की रहने वाली डॉ. शोभारानी कुदेशिया अलीगढ़ के टीकाराम गर्ल्स डिग्री कॉलेज के संगीत विभाग की विभागाध्यक्ष रहीं। सेवानिवृत्ति के बाद अब वह वर्तमान में बरेली कॉलेज के संगीत विभाग में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनका जन्म शहर के भूड़ मुहल्ले में स्व. राजेंद्र नाथ कुदेशिया और स्व. शकुंतला देवी के घर हुआ। संगीत के प्रति अनुराग उन्हें परिवार से मिला। उनकी माता स्वयं अच्छा गायन करने के साथ ही वायलिन बहुत अच्छा बजाना जानती थीं। उन्हें बासुंरी और जलतरंग बजाने का भी अच्छा ज्ञान था। ऐसे माहौल में पली-बढ़ीं शोभारानी का झुकाव संगीत के प्रति बचपन से ही हो गया। महज सात वर्ष की आयु में ही उन्होंने पड़ोस में रहने वाले स्व. भइया लाल से तबला सीखना शुरू किया। फिर जयपुर घराने के स्व. प्यारेलाल और स्व. मालचंद से कत्थक सीखा। फिर उन्होंने 11वीं कक्षा में स्व. सुभाष चंद्र जौहरी के निर्देशन में तबले से प्रवीण किया। इसके बाद आगे की शिक्षा दीक्षा उन्होंने बनारस घराने के स्व. डॉ. रमावल्लभ मिश्रा के निर्देशन में ग्रहण की।
संस्कृति विभाग से मिली Scholarship
वर्ष 1976 से उन्हें भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से युवा कलाकारों को दी जाने वाली स्कॉलरशिप दी गई। 1975 में यह स्कॉलरशिप पाने वाली भी शहर की पहली महिला युवा कलाकार रहीं। तबला जो कि पुरुषों का वाद्य माना जाता था, अपनी अथक लगन और साधना से उन्होंने तबला वादक के रूप में अपनी अलग पहचान न सिर्फ देश में बनाई, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रस्तुति दी।
महिला दिवस पर किया London में Show
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहली परफार्मेंस महिला दिवस के मौके पर वर्ष 1998 में लंदन में हुए एक कार्यक्रम में हुई। इसके बाद वर्ष 1997 में ही उन्होंने लात्विया (रीगा) में अगली परफार्मेंस दी। इसके अतिरिक्त आप वर्ष 1978 से आकाशवाणी की नियमित कलाकार हैं। इसके साथ ही तबले के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2007 में संगीत नाटक अकादमी की ओर से सम्मानित किया गया था।
संगीत में नहीं रहा पहले जैसा Atmosphere
डॉ. शोभारानी कुदेशिया का मानना है कि पहले शहर में शास्त्रीय संगीत को लेकर काफी समृद्ध माहौल था। भारत सरकार द्वारा संचालित सांग ड्रामा डिविजन का ऑफिस शहर में था, जिसमें उस समय के काफी अच्छे कलाकार समय समय पर शहर में आते थे। उनकी कांफ्रेंस शहर में होती थी, जिससे स्थानीय कलाकारों को उनका सानिध्य और मार्गदर्शन मिलता था। इसके अतिरिक्त सरगम परिषद भी कांफ्रेंस कराती थी, लेकिन अब वैसा माहौल नहीं है। शास्त्रीय संगीत को लेकर अब लोगों में रूझान नहीं दिखता है, हालांकि लाइट म्यूजिक के कई कार्यक्रम होते हैं।
तबले की Present स्थिति पर लिखी Book
उनकी तबला साधना सिर्फ पठन पाठन तक सीमित नहीं रही, बल्कि वर्तमान दौर में तबले की स्थिति पर उन्होंने पुस्तक भी लिखी है, जो कि प्राचीन ताल शास्त्र के परिप्रेक्ष्य में आज का तबला वादन नाम से प्रकाशित हुई। उनका मानना है कि तबला एक उन्नत वाद्य है, जो कि हर वाद्य के साथ संगत में काम आता है, इसलिए आरकेस्ट्रा के दौर में भी तबला की सार्थकता अपनी जगह बनी हुई है।