संगीत के जरिये विदेश तक पहचान बना रहे आलोक बनर्जी, भारतीय संस्कृति को दे रहे बढ़ावा
शास्त्रीय संगीत में लोकगीत लोक गायन कथक जैसी भारतीय संस्कृति को नाथनगरी में संगीत के शिक्षक आलोक बनर्जी सहेजे हुए है। यह ही नहीं वे इसे बढ़ावा देने का भी काम कर रहे हैं। दस सालों में शास्त्रीय संगीत ने विदेशों में भी लोगों को अपना कायल किया है।
बरेली, जेएनएन। भारतीय संस्कृति की चर्चा शास्त्रीय संगीत के जिक्र के बिना अधूरी है क्योंकि हमारी संस्कृति आध्यात्मिक, त्याग और तपस्या की धरोहर है। जो शास्त्रीय संगीत से जुड़ी है। शास्त्रीय संगीत इतना समृद्ध है कि विदेशों में भी लोग इसकी साधना में जुटने लगे हैं। राजेंद्र नगर निवासी शास्त्रीय संगीतज्ञ आलोक बनर्जी संगीत के रूप में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी कर रहे हैं। वह बताते हैं कि उनसे संगीत सीख कर उनके कई शिष्य अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया समेत अन्य देशों में बस गए और वहां इसका प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इसके अलावा वह इंटरनेट मीडिया के जरिए विदेशियों से जुड़कर उन्हें संगीत की बारीकी सीखाते हैं। वर्तमान में उम्र अधिक होने की वजह से अब इससे दूर हुए मगर शहर में अभी भी संगीत के ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं।
शास्त्रीय संगीत में लोकगीत, लोक गायन, कथक जैसी भारतीय संस्कृति को नाथनगरी में संगीत के शिक्षक आलोक बनर्जी सहेजे हुए हैं। यह ही नहीं वे इसे बढ़ावा देने का भी काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि विश्व पटल पर देखा जाए तो पिछले नौ से दस सालों में शास्त्रीय संगीत ने विदेशों में भी लोगों को अपना कायल किया है। कुछ वर्षों पहले लोकगायन, लोकनृत्य एक क्षेत्र, एक प्रदेश या देश तक ही सीमित था लेकिन, वर्तमान में इसकी ख्याति अन्य देशों में भी फैली हुई है। इसको बढ़ावा देने का सबसे बड़ा काम संगीत से जुड़े वे रियलटी शो कर रहे हैं जो शास्त्रीय संगीत में निपुण प्रतिभागियों को आगे बढ़ाने में विश्वास रखते हैं। इसलिए भले ही किसी भी देश का संगीत देश में आकर अपनी छाप छोड़ने का प्रयास करे। कुछ समय के लिए तो युवा वर्ग इसका दामन थामे रखता है लेकिन, एक समय के बाद वे शास्त्रीय संगीत में खोना शुरू कर देता है।
छोटी उम्र से संगीत से जुड़ेंगे बच्चे तो मिलेगा और बढ़ावा: शास्त्रीय संगीत की धरोहर मजबूत रहे इसके लिए लोगों को खुद से जागरूक होना पड़ेगा। छोटी उम्र से ही अपने बच्चों को लोकगीत, भजन, लोकनृत्य जैसी अपनी संस्कृति से जोड़ना पड़ेगा। तभी इस संस्कृति को भविष्य में भी सशक्त और समृद्ध बनाकर रखा जा सकता है।