गठबंधन की गांठ खुलना बाकी, चल पड़ी जुबान
कहने को अभी दिल्ली दूर है। लोकसभा चुनाव में एक साल का वक्त बचा है लेकिन, सियासी तरकश में सजाकर रखे गए तीर निशाने की तरफ साध दिए गए हैं।
वसीम अख्तर, बरेली
कहने को अभी दिल्ली दूर है। लोकसभा चुनाव में एक साल का वक्त बचा है लेकिन, सियासी तरकश में सजाकर रखे गए तीर निशाने की तरफ साध दिए गए हैं। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार को रोकने के लिए विपक्ष हम साथ-साथ हैं..जैसे तराने गुनगुना रहा है। फूलपुर, गोरखपुर के बाद कर्नाटक के 'नाटक' से साफ है, 2019 में गठबंधन होकर रहेगा। हालांकि, फार्मूला क्या होगा, इसकी गांठे खुलना बाकी हैं लेकिन, स्थानीय नेताओं में अभी से संसद तक पहुंचने की दौड़ चल पड़ी है। सपा नेता एवं पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार खुले तौर पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुके तो कई नेता यही बात घुमाकर कह रहे हैं। कल क्या होने जा रहा है, यह वक्त की गर्दिश में है, लेकिन जबानी जंग दिन ब दिन तेज हो रही है।
नवाबगंज के पूर्व विधायक भगवत सरन ने मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर प्रेस कांफ्रेंस करके केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार पर निशाना साधा। विकास में नाकामी का जिक्र करते हुए व्यक्तिगत रूप से भी बहुत सी बातें कहीं। जबानी जंग का यह आगाज था और एक के बाद कई सियासतदां मैदान में उतर आए। केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने पहचान के मुताबिक सधे हुए लफ्जों में भगवत सरन पर पलटवार किया। उनसे अपना पारिवारिक रिश्ता और अहसान दोनों ही गिना दिए। मामला दो दिग्गजों के बीच छिड़ा था लेकिन, लड़ाई में बिथरी चैनपुर के विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल भी कूद पड़े। उन्होंने बंद लफ्जों में संसद पहुंचने की ख्वाहिश भी जता दी। हालांकि, सियासी मैदान में वह नए हैं लेकिन, कद से बड़ी बात कह गए। पप्पू भरतौल ने भगवत सरन के साथ संतोष गंगवार को भी नहीं बख्शा। टिकट तय नहीं, ख्वाब संसद पहुंचने के
अब अगर चुनावी फैक्ट की बात करें तो नेताओं के बीच अभी से शुरू हुई चुनावी जंग फिजूल दिखाई देती है। भले ही भगवत सरन गंगवार ने चुनाव लड़ने का एलान कर दिया, पर तय नहीं है कि उन्हें सपा से टिकट मिल ही जाएगा। वह सांसद संतोष गंगवार, जो कि केंद्र सरकार में श्रम एवं रोजगार मंत्री हैं, के खिलाफ ताल ठोक देंगे। इसलिए क्योंकि सपा-बसपा के बीच गठबंधन होने की बातें दोनों दलों के नेताओं में संजीदगी के साथ हो रही हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस और सपा में तालमेल हुआ था, जो अभी खत्म होने की घोषणा नहीं हुई है। ऐसे में भाजपा के अलावा दूसरे किसी प्रमुख दल से चुनाव लड़ने का दारोमदार गठबंधन से तय होगा। इसमें अभी वक्त लगेगा। सपा और बसपा का जिला नेतृत्व भी यही बात कह रहा है। दोनों पार्टियों के जिलाध्यक्ष भी मान रह हैं कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन का दावेदार कौन होगा, अभी यह दूर की कौड़ी है।
इस फार्मूले से सपा को ज्यादा सीट
अगर मंडल की बात करें तो बरेली, आंवला, बदायूं, पीलीभीत और शाहजहांपुर में लोकसभा की पांच सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में शाहजहांपुर में बसपा और शेष तीन सीटों पर सपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। बदायूं से सपा नेता धर्मेद्र यादव सांसद बने थे। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव में सपा व बसपा के बीच गठबंधन की बुनियाद एक फार्मूले पर रखे जाने की बात सामने आई थी। वह फार्मूला यह बताया गया था कि भविष्य के लोकसभा चुनाव में जहां सपा या बसपा पहले या दूसरे नंबर आई, वह सीट गठबंधन होने पर उसके पास ही रहेगी। जिलाध्यक्षों की बात
लोकसभा 2019 को लेकर आलाकमान के स्तर से फिलहाल जातिगत आंकड़े इत्यादि मांगे गए हैं। टिकट को लेकर किसी तरह के निर्देश नहीं आए हैं। न ही इस तरह की कोई बात हुई है। यह सब गठबंधन के बाद तय होगा।
-शुभलेश यादव, जिलाध्यक्ष समाजवादी पार्टी पार्टी स्तर पर लोकसभा चुनाव के संबंध में कोई निर्देश नहीं आए हैं। फिलहाल संगठन का काम चल रहा है। कुछ लोग चुनाव लड़ने के लिए दावा जरूर पेश कर रहे हैं। उनसे किसी तरह का कोई कमिट्मेंट नहीं कर रहे। यह सब गठबंधन के ही बाद साफ होगा।
-नरेंद्र सागर, जिलाध्यक्ष, बहुजन समाज पार्टी