वायु सेना दिवस : मौका मिला तो रिटायर्ड जांबाज फिर दिखाएंगे देश सेवा का जज्बा Bareilly News
युद्ध क्षेत्र हो या आपदा में लोगों को सुरक्षित निकालना उन्हें राहत सामग्री पहुंचाना हवाई जांबाजों ने हर चुनौती में अपने शौर्य और वायुसेना के मान को ऊंचा रखा।
जेएनएन, बरेली : ‘नभ स्पर्शम दीप्तम्’। श्रीमद् भागवत गीता के 11 वें अध्याय के ये शब्द भारतीय वायु सेना का आदर्श वाक्य हैं। विश्व की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना भारत की है। युद्ध क्षेत्र हो या आपदा में लोगों को सुरक्षित निकालना, उन्हें राहत सामग्री पहुंचाना हवाई जांबाजों ने हर चुनौती में अपने शौर्य और वायुसेना के मान को ऊंचा रखा। उपलब्धियां महज संसाधनों और पायलट के बल पर ही नहीं होतीं। पूरी टीम (क्रू) होती है। आपको रूबरू कराते हैं जिले के ऐसे सेवानिवृत्त वायुसैनिकों से जिन्होंने किसी न किसी युद्ध में अपनी भागीदारी निभाई।
चार दिन में पहुंचा पाते थे रसद आयुध
रिटायर्ड सार्जेंट मुहम्मद अनवर हुसैन पाकिस्तान से 1965 और 1971 में हुए युद्ध के दौरान वायु सेना में थे। उनकी तैनाती इलाहाबाद में थी।युद्ध को याद कर बताते हैं कि उन दिनों ट्रांसपोर्टेशन व्यवस्था बेहतर नहीं थी। इसलिए सप्लाई कोर को लंबे जमीनी रास्ते तय करने पड़ते थे। पठानकोट से कश्मीर तक रसद-आयुध पहुंचाने में तीन से चार दिन लग जाते थे।
कारगिल वार में जागे कई दिनरात
सार्जेंट पद से सेवानिवृत्त मुकेश सिंह 1999 के कारगिल युद्ध के समय कच्छ बॉर्डर के नलिया एयरबेस पर तैनात थे। वह बताते हैं कि हमारे मिग-21 ने दुश्मन के लड़ाकू विमान को मार गिराया। 21 दुश्मन भी मारे। इसके बाद इनपुट मिला कि गुस्साया पाकिस्तान नलिया एयरबेस पर हमला करने की फिराक में है। यह एयरबेस कराची के काफी नजदीक है। इनपुट पर बीएसएफ और सेना समेत चार लेयर की सुरक्षा एयरबेस पर रही। इस दौरान कई दिन और रात जागकर काटे। वह सियाचिन ग्लेशियर में भी तैनात रहे।
शागिर्द के तैयार पैराशूट से बचे थे अभिनंदन
राजस्थान, बीकानेर के नाल सेक्टर, सूरतगढ़ और बठिंडा में बतौर सार्जेंट तैनात रहे रंजन कुमार सेफ्टी इक्विपमेंट वर्कर थे। इनकी जिम्मेदारी आदेश के चंद मिनटों के अंदर पायलट और विमान को पूरी तरह तैयार करने की होती है। रंजन कुमार ने कई सार्जेंट और कारपोरेल को यह ट्र्रेंनिंग दी। वो गर्व बताते हैं कि विंग कमांडर अभिनंदन कुमार ने लड़ाकू विमान हमले में क्रेश होने के बाद जिस पैराशूट की मदद से सफल छलांग लगाई थी। वो उनके शागिर्द ने ही तैयार किया था।
लड़ाकू विमान तैयार करते वक्त गंवाए दोनों हाथ
कारपोरेल धनंजय शर्मा ने दस साल वायुसेना में देशसेवा की। इनका काम लड़ाकू विमानोंमें मिसाइल, बम, 30 एमएम कार्टेज आदि को लोड करना होता है। वह बताते हैं कि जांघ जितनी बड़ी-बड़ी कार्टेज हाथ से लेकर जाते हैं। आपात स्थिति के लिए लड़ाकू विमान तैयार कर रहे थे। इसी दौरान विमान का टायर फट गया, हादसे में उनके दोनों हाथ चले गए। इसके बाद वह रिटायर हो गए। लेकिन देशसेवा के लिए तैयार रहने का जज्बा उनमें आज भी साफ झलकता है।
वो गए और आनी बंद हो गईं बांग्ला से फ्लाइट
रिटायर्ड सार्जेंट राकेश विद्यार्थी बताते हैं उनका काम दूसरे देशों के मैसेज को पकड़ना और डिकोड करने के लिए भेजना था। इसके बाद प्र्लांनग सेक्शन काम करता था। जिस दिन उन्हें बंगाल बार्डर पर भेजा गया। उसी दिन से बांग्ला की ओर से फ्लाइट आनी बंद हो गई। उनका कहना है कि मिग-25 अब भी देश के बेजोड़ लड़ाकू विमान में से एक है। हालांकि राफेल की बात अलग होगी।