बाराबंकी : अब बेसहारा गोवंश जीरो बजट खेती के आधार बनेंगे। जिले के 37 गो आश्रय स्थलों में करीब 10 हजार गोवंश है। गोबर व गोमूत्र से जीवामृत व बीजामृत तैयार कर उसका उपयोग खेतों में फसल उत्पादन के लिए किया जाएगा।
शासन के निर्देश के क्रम में जीरो बजट खेती के बारे में जिला प्रशासन ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. मार्कंडेय ने बताया कि ग्राम पंचायतों में गो आश्रय स्थल हैं। ग्राम पंचायतों को ही जीवामृत व बीजामृत, पंच गव्य, कीटनाशक जैसे खेती उपयोगी चीजों को तैयार कराना है। बजट की व्यवस्था में हम सब लगे हैं। बजट की व्यवस्था होते ही शासन की मंशा को मूर्त रूप दिया जाएगा। इससे गो आश्रय स्थल भी स्वावलंबी बनेंगे।
क्या है जीरो बजट खेती : चाहे कोई फसल हो या बागवानी जिसमें लागत शून्य हो। फसलों को बढ़ने और उनकी गुणवत्तायुक्त उपज लेने के लिए जिन-जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है वह सभी घर में ही उपलब्ध हों। किसी भी दशा में बाजार पर निर्भर न हों। इसे ही जीरो बजट खेती कहते हैं।
पंच गव्य : गाय से उत्पन्न प्रत्येक पदार्थ औषधि हैं। गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र व गोबर से पंचगव्य बनाया जाता है।
गाय के गोबर का रस, दही का खट्टा पानी, दूध, घी, व गोमूत्र इन सभी चीजों को बराबर मात्रा में मिलाकर बनाई गई औषधि प्रयोग करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है। खेती के ²ष्टिगत भूमि में सूक्ष्य जीवाणुओं की संख्या में बढोतरी, भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार, फसल उत्पादन व उसकी गुणवत्ता में वृद्धि, भूमि में हवा व नमी को बनाए रखना, फसल में रोग व कीट का प्रभाव कम करना है। गन्ना, बाजरा, मक्का, धान, मूंग, उर्द, कपास, सरसों, मिर्च, टमाटर बैंगन, प्याज, मूली, गाजर, आलू, हल्दी, अदरक, लहसुन, हरी सब्जियां, फूल पौधे व औषधीय पौधों के लिए उपयोगी है।
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