..तो घुंघरुओं की आवाज से दूर होती है कांवड़ियों थकान
महाशिवरात्रि 11 मार्च को है। इसके ²ष्टिगत कांवड़ियों का जत्था लोधेश्वर महादेवा की ओर नाचते-गाते हर-हर बम-बम का उद्घोष करते पहुंच रहा है। इसमें खास बात यह है कि अधिकांश कांवड़ियों के पांवों में घुंघरु बंधे हैं जो चलने पर छम-छम की आवाज के साथ ही कांवड़ियों का ऊर्जा प्रदान करते हैं।
प्रेम अवस्थी, बाराबंकी
महाशिवरात्रि 11 मार्च को है। इसके ²ष्टिगत कांवड़ियों का जत्था लोधेश्वर महादेवा की ओर नाचते-गाते, हर-हर बम-बम का उद्घोष करते पहुंच रहा है। इसमें खास बात यह है कि अधिकांश कांवड़ियों के पांवों में घुंघरु बंधे हैं जो चलने पर छम-छम की आवाज के साथ ही कांवड़ियों का ऊर्जा प्रदान करते हैं। कांवड़ियों का मानना है कि घुंघरूओं की आवाज से थकान नहीं लगती।
कानपुर देहात जिले के कटरा गांव के कांवड़ियों के जत्थे में शामिल जगमोहन से जब पूछा गया कि पांवों में घुंघरू क्यों बांधे हो? वह बोले कि घुंघरू बजते रहते हैं इसलिए चलने पर थकान नहीं लगती। जगमोहन की बात का समर्थन जितेंद्र, सरोज, राम सहारे व शिवराम आदि कांवड़ियों ने भी किया।
एक-दूसरे की सेवा का भाव : कांवड़िया एक दूसरे के प्रति गजब की सेवा का भाव भी रखते हैं। पैदल चलने पर थकान आने पर एक दूसरे के पांवों की मालिश भी करते हैं। कांवड़ को रास्ते में कही रखा नहीं जाता है इसलिए जब भोजन व विश्राम करना होता है तो बारी-बारी एक-दूसरे की कांवड़ लेकर खड़े रहते हैं। गणेशपुर : कांवड़ियों का आवागमन तेज हो गया है। प्रशासन की ओर से कराई की व्यवस्थाएं ऊंट के मुंह में जीरा वाली कहावत को चरितार्थ कर रहीं हैं, पर कांवड़ियों में इसका कोई मलाल नहीं दिखाई देता। भोलेनाथ के भक्त अपनी धुन में मस्त दिखाई देते हैं। जल चढ़ाने से पहले कांवड़ियां कांवड़ की पूजा-अर्चना भी करते हैं। उसे मंदिर के आसपास के घरों की छतों पर व मंदिर परिसर के ऊंचे स्थानों पर रख रहे हैं। इससे रंग-बिरंगी कांवड़ से मंदिर के आसपास का नजारा मनमोहक हो गया है। सबसे ज्यादा कांवड़िया लखनऊ के कारोरी, उन्नाव, कानपुर, कानपुर देहात, उरई, जालौन, झांसी, कन्नौज, शाहजहांपुर जिलों के हैं। गोंडा ,बलरामपुर ,बहराइच, रायबरेली, अयोध्या सहित अन्य जिलों से भी कांवड़िये आ रहे हैं।