स्वरोजगार का विकल्प तलाश रहे निजी स्कूलों के शिक्षक
स्वरोजगार का विकल्प तलाश रहे निजी स्कूलों के शिक्षक
बाराबंकी : लॉकडाउन के चलते बंद हुए खासकर ग्रामीण अंचल के अधिकांश निजी स्कूल-कॉलेजों के शिक्षक-शिक्षिकाओं को वेतन नहीं मिल रहा। वेतन के लिए प्रबंधतंत्र की शिकायत को भी उचित नहीं मानते क्योंकि इन्हें पता है कि बच्चों की फीस से ही स्कूल के खर्चे निकलते हैं। जब फीस ही नहीं आ रही तो वेतन कहां से दें? अचानक बदले हालात में ऐसे शिक्षक रोजगार के विकल्प तलाश रहे हैं। उन्नत खेती में भी इन्हें स्वरोजगार दिखाई देने लगा है। ऐसे ही शिक्षकों में फतेहपुर क्षेत्र के मीरानगर स्थित एक इंटर कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षक मनीष वर्मा व उनकी पत्नी हेमलता भी शामिल हैं। बेलहरा के निकट बेहड़ा मिठवारा मनीष का गांव है। गांव से पत्नी के साथ कॉलेज में पढ़ाने जाते थे। पति-पत्नी दोनों को इंटर कॉलेज से कुल 15 हजार रुपये मिलते थे। लॉकडाउन में स्कूल बंद होने से बच्चों की फीस भी नहीं आई। दो माह से वेतन नहीं मिला।
मनीष रोजगार के विकल्प के रूप में किराये पर जमीन लेकर खेती करने का तरीका सीखने हरख ब्लॉक के ग्राम दौलतपुर स्थित पद्मश्री राम सरन के पास पहुंचे। मनीष ने कहा कि कि सरकार कहती है कि प्रबंधतंत्र वेतन दे, लेकिन हम तो जानते हैं कि प्रबंधतंत्र की आमदनी का जरिया जब बच्चों से मिलने वाली फीस है तो वेतन कहां से दे? इसलिए उन्नत खेती कर करना चाहता हूं। पैतृक जमीन ज्यादा नहीं हैं। रामसरन जी किराए पर खेत लेकर केला व टमाटर की खेती करते हैं। इसलिए इनके पास आया हूं कि ताकि जान सकूं कि किराए पर खेत कैसे लिए जाते हैं?
रामसरन ने बताया कि मनीष अकेले ऐसे नौजवान नहीं हैं जो खेती में रोजगार का विकल्प ढूंढ़ने आए हैं। हर रोज चार-छह लोग आते हैं। उन्होंने प्रसंगवश बताया कि चार साल पहले इटावा के एक दंपती आए थे। पति-पत्नी दोनों नौकरी करते थे लेकिन उनमें इस बात की चिता थी कि यदि अचानक नौकरी न रहे तो खेती ही रोजगार का जरिया होगी।