औद्यानिक खेती से संवार रहे सूरत
चुनाव के बाद आंगनबाड़ी केंद्रों में भरी जाएंगी रिक्तियां बाराबंकी जिले के तीन हजार 52 आंगनबाड़ी केंद्रों में साढ़े तीन सौ कार्यकर्ता सहायिका और मिनी कार्यकर्ताओं के पद खाली हैं। रिक्तियां भरने के आदेश आ चुके हैं लेकिन इन रिक्तियों पर चयन चुनाव बाद होगा। चुनाव के बाद आंगनबाड़ी केंद्रों में भरी जाएंगी रिक्तियां बाराबंकी जिले के तीन हजार 52 आंगनबाड़ी केंद्रों में साढ़े तीन सौ कार्यकर्ता सहायिका और मिनी कार्यकर्ताओं के पद खाली हैं। रिक्तियां भरने के आदेश आ चुके हैं लेकिन इन रिक्तियों पर चयन चुनाव बाद होगा। चुनाव के बाद आंगनबाड़ी केंद्रों में भरी जाएंगी रिक्तियां बाराबंकी जिले के तीन हजार 52 आंगनबाड़ी केंद्रों में साढ़े तीन सौ कार्यकर्ता सहायिका और मिनी कार्यकर्ताओं के पद खाली हैं। रिक्तियां भरने के आदेश आ चुके हैं लेकिन इन रिक्तियों पर चयन चुनाव बाद होगा।
बाराबंकी : फसल चक्र अपनाकर अजय बीते दस वर्षों से औद्यानिक खेती करते आ रहे हैं। इन्होंने ने दो बीघे जमीन से खेती शुरू की थी, आज वह दो एकड़ जमीन के मालिक हैं। औद्यानिक की उन्नतिशील खेती से न केवल अपनी गरीबी दूर की, बल्कि परिवार को भी तमाम सुख सुविधाओं से जोड़ दिया है, अब इनका नाम प्रगतिशील कृषकों में गिना जाता है।
त्रिवेदीगंज के ग्राम दहिला निवासी अजय कई तरह की सब्जियों की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। उद्यान विभाग से भले ही सरकारी सुविधाएं न मिल रही हों लेकिन इन्होंने ने अपनी कड़ी मेहनत से तरक्की के रास्ते खोल दिए हैं। पारिवारिक समस्याओं के चलते अजय सिर्फ हाईस्कूल तक ही पढ़ सके। पारम्परिक खेती में लगातार हो रहे नुकसान के चलते कुछ नया करने की धुन में सब्जियों की खेती शुरू करने की ठान ली। लगभग दस वर्ष पूर्व मटर व टमाटर की खेती शुरू की, जिसमें अच्छा फायदा हुआ। अजय बताते हैं कि जमीन कम थी, परिवार लंबा था, खेती के अलावा अन्य कोई काम जानता भी नहीं था। हमने खेती में फसल चक्र अपनाकर टमाटर, मटर, खीरा, लौकी, तरोई व कद्दू की खेती कर लाखों रुपये का फायदा कमाया। अब वह दो एकड़ जमीन के मालिक भी हो गए हैं। इस समय एक एकड़ में मटर धनिया की फसल तैयार है, जबकि एक एकड़ में टमाटर तैयार होने वाली है। फसलों में अलग-अलग फायदें : अजय बताते हैं कि धान कटाई के बाद मटर की बोवाई की जाती है, जो 70 से 80 दिन में तैयार हो जाती है। मटर के बाद इसी खेत में नर्सरी में तैयार तरोई, लौकी व खीरा लगा दिया जाता है, मई जून तक चलता है। उसके बाद फिर धान की रोपाई कर दी जाती है। एक एकड़ मटर में लगभग 20 हजार हजार की लागत आती है, जबकि करीब एक लाख का मुनाफा होता है। एक एकड़ टमाटर में 50 हजार की लागत आती है, लगभग तीन लाख रुपये की कमाई हो जाती है। साथ ही तरोई, लौकी आदि से भी अच्छा फायदा मिल जाता है।