टाप-बंदियों के लिए अपने हुए बेगाने
वी. राजा, बाराबंकी जिला जेल के बंदियों के लिए अपनों का व्यवहार गैरों के जैसा हो गय
वी. राजा, बाराबंकी
जिला जेल के बंदियों के लिए अपनों का व्यवहार गैरों के जैसा हो गया है। इन्हें जेल से रिहा कराने की कवायद करना तो दूर परिजन उनकी कुशलक्षेम जानना तक मुनासिब नहीं समझते हैं। ऐसे एक दो नहीं बल्कि कई ऐसे बंदी है। जो जिला कारागार में सजा काट रहे है। इनमें छह माह और कई वर्षों से जेल में सजा काटने वाले बंदी तक शामिल हैं। जिला कारागार में वर्तमान समय में 1359 बंदी बंद है। इसमें से कुल 272 सिद्धदोष बंदी हे। 72 महिला बंदी है। उनमें 16 सिद्धदोष बंदी है।
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केस एक: देवा कोतवाली क्षेत्र के ग्राम टेराकला के रहने वाले 80 वर्षीय केशवराम को छह माह पूर्व जमीन की धोखाधड़ी में पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जेल जाने के बाद वृद्ध केशवराम से मिलने न तो उनका पुत्र आया और न ही कोई रिश्तेदार जेल में मिलने उनसे आया। छह माह से उनका कोई अपना जेल में मिलने नहीं आया। जब वह दूसरे बंदियों के परिवारीजन को जेल में मिलाई के दौरान देखते है तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते है। वे बताते है कि उनका एक बेटा महेंद्र, बहू व एक पौत्री है।
-------------------------- केस दो: पानीपत जिले के के रहने वाले संजय को वर्ष 2013 में एक केस में दस वर्ष कैद और पांच हजार जुर्माने की सजा हुई थी। संजय को मलाल है कि तब से लेकर आजतक उनका कोई भी परिवार का सदस्य उसे मिलने नहीं आया। बीती आठ अगस्त वर्ष 2017 को सजा हुई। छह वर्ष तक की सजा वह काट चुका है। किसी भी परिवारीजन के न आने पर जेल प्रशासन की ओर न्यायालय में अपील कराई गई है। संजय कहता है कि बचपन में ही उसके माता पिता की मौत हो गई थी। वह बड़े पापा के यहां रहता था। ------------------------------- क्या कहते हैं जेल अधीक्षक: जिन बंदियों के परिवारीजन जेल में मिलने आते है। उन्हें मिलवाया जाता है। बंदियों की कोई समस्या है तो उसकी समस्या का निदान जेल प्रशासन करता हैं।