'..मैं उस माटी का बेटा हूं मंदिर है जहां शहीदों का'
जवाहर लाल नेहरु स्मारक महाविद्यालय की ओर से मनाए जा रहे जनेस्मा महोत्सव में मंगलवार को महाकवि गुरु प्रसाद सिंह मृगेश स्मृति काव्य संध्या का आयोजन किया गया। साहित्यकार श्याम सुंदर दीक्षित की अध्यक्षता और कवि राम किशोर तिवारी किशोर के संचालन में हुई काव्यसंध्या की शुरुआत डॉ. राघवेंद्र मिश्र प्रणय की वाणी वंदना से हुई।
बाराबंकी : जवाहर लाल नेहरु स्मारक महाविद्यालय की ओर से मनाए जा रहे जनेस्मा महोत्सव में मंगलवार को महाकवि गुरु प्रसाद सिंह मृगेश स्मृति काव्य संध्या का आयोजन किया गया। साहित्यकार श्याम सुंदर दीक्षित की अध्यक्षता और कवि राम किशोर तिवारी किशोर के संचालन में हुई काव्यसंध्या की शुरुआत डॉ. राघवेंद्र मिश्र प्रणय की वाणी वंदना से हुई। काकोरी से आए ओजकवि अशोक अग्निपथी ने पढ़ा- 'पूजा में दीपक जलता है जन-गण-मन की उम्मीदों का, मैं उस माटी का बेटा हूं मंदिर है जहां शहीदों का।' रामकिशोर तिवारी किशोर ने पढ़ा-'उस भगत सिंह नर नाहर के चरणों में शीश झुकाता हूं, उस महा सूर्य की पूजा में छोटा सा दीप जलाता हूं।' वहीं ज्ञानेंद्र पाठक ने अपनी रचनाओं से काव्य संध्या को आध्यात्मिक व धार्मिक मोड़ दिया। उन्होंने पढ़ा-'राम बनना क्या हंसी परिहास है, राम का जीवन कठिन वनवास है। ' अजय प्रधान ने कवि मृगेश जी को यूं नमन किया-'जिनकी दहाड़ सुन भाग जाता था अज्ञान, कविता के कानन के केहरी मृगेश जी।' राघवेंद्र प्रणय ने 'अगर कथानक बनना है वह, जिसे पीढि़यां याद करें तुम चौपाई बनकर आना, मैं मानस बन जाऊंगा' पढ़कर वाहवाही लूटी। आदर्श बाराबंकवी ने पढ़ा- 'लगाई जब से दरवाजे पे मां के नाम की तख्ती, मुसीबत आके मेरे घर पे अब दस्तक नहीं देती।' शिव कुमार व्यास ने वीर रस की रचनाओं से श्रोताओं में जोश भरा। संयोजन अंबरीष अंबर ने किया। इससे पहले मुख्य अतिथि साहित्यकार अजय सिंह गुरु जी ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया और कवि मृगेश सहित जनपद के वरिष्ठ साहित्यकारों के संबंध में चर्चा की। डॉ. एलएम सिंह, कौशलेंद्र सिंह, डॉ. मनीष पांडेय, रीना सिंह आदि मौजूद रहे।