शासन ने बंदी की रिहाई की दया याचिका की अस्वीकार
- आदर्श कारागार लखनऊ में सजा काट रहा है बंदी - हत्या के मामले आजीवन कारावास की हुई
- आदर्श कारागार लखनऊ में सजा काट रहा है बंदी
- हत्या के मामले आजीवन कारावास की हुई है सजा
वी. राजा, बाराबंकी
हत्या के मामले में लखनऊ के आदर्श कारागार में आजीवन कारावास की सजा काट रहे जिले के एक बंदी की दया याचिका शासन ने अस्वीकार कर दी है। प्रशासन से अनुमति न मिलने पर दया याचिका अस्वीकार हुई है।
बताते चलें कि रामसनेहीघाट कोतवाली क्षेत्र के ग्राम गोरपुर निवासी सिद्धदोष बंदी अशोक कुमार पुत्र सागर ने बीती 22 जून वर्ष 1993 में हत्या के बदले की भावना में रंजिश को लेकर 14 सह अभियुक्तो के साथ बांका से हमला कर आग लगाकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। जिस पर 22 सितंबर वर्ष 2008 को जिले की अदालत से अपर सत्र न्यायाधीश ने मृत्युदंड दिया था। इसके बाद उच्च न्यायालय में मामला गया। वहां सजा को तब्दील कर आजीवन कारावास कर दिया गया। 31 अगस्त वर्ष 2016 तक अशोक ने आठ वर्ष एक माह व दो दिन की अपरिहार्य सजा काटी। इसके बाद 9 साल 9 माह 26 दिन की सपरिहार्य सजा काट चुके है। बंदी अशोक के 11 सह अभियुक्त मामले में दोषमुक्त किए जा चुके है। दो अन्य की मौत हो चुकी है। एक अन्य बंदी भी इसके साथ सजा काट रहा है। बंदी अशोक ने दया याचिका के तहत रिहाई की मांग की थी। मगर प्रशासन से अनुमति नहीं मिली। जिस पर शासन ने अनुच्छेद 161 के तहत दया याचिका को अस्वीकार कर दिया है। शासन के संयुक्त सचिव सूर्य प्रकाश ¨सह सेंगर ने महानिरीक्षक कारागार प्रशासन को आदेश भेजा है। बंदी अशोक वर्तमान समय में आदर्श कारागार लखनऊ में सजा काट रहा है। जेल अधीक्षक आरके जायसवाल ने बताया कि प्रशासन की रिपोर्ट पर ही बंदी की दया याचिका निर्भर रहती है।