कोरोना संक्रमण काल में भी नहीं बुझने दी 'शिक्षा की लौ'
कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन में सभी स्कूल-कालेज बंद हो गए थे।
जगदीप शुक्ल, बाराबंकी
कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन में सभी स्कूल-कालेज बंद हो गए थे। अभिभावकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बच्चों की पढ़ाई जारी रखना थी। कुछ दिनों बाद ऑनलाइन शिक्षा विकल्प के रूप में सामने आई। निजी स्कूलों से जुड़े अभिभावकों के सामने संसाधन थे तो तकनीकी जानकारी का अभाव समस्या बना। परिषदीय स्कूलों के बच्चों के अभिभावकों के सामने इससे बड़ी समस्या थी। उनके पास न तो एंड्राइड मोबाइल थे और न ही तकनीकी जानकारी ही। संसाधन जुटाने के किसी ने भैंस बेची तो किसी ने रिश्तेदारों के यहां बच्चों को भेजकर पढ़ाई को जारी रखने की कोशिश की। इस बीच शिक्षकों ने भी आगे बढ़कर पहल की और शिक्षा की लौ को प्रज्जवलित रखने संकल्प लिया और उसे पूरा भी किया। प्रस्तुत है रिपोर्ट..
----------------------------------
गांव-गांव लगा दी पाठशाला :
हैदरगढ़ के प्राथमिक विद्यालय भियामऊ की शिक्षिका शिवानी सिंह ने कक्षाओं के विद्यार्थियों के माध्यम से छोटी कक्षाओं के बच्चों को टोलियों में पढ़ाने की पहल की। पांच सितंबर को उन्होंने भियामऊ से इसकी शुरुआत की। इसके बाद बड़ी कक्षाओं के छात्र-छात्राओं को निश्शुल्क पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे यह मुहिम पासिनपुरवा, मितईपुरवा, भेटमुआ, सिकंदरपुर, रीठी, रनापुर, तारागंज, गोतौना, बिबियापुर सहित 25 गांवों तक पहुंची। इससे जुड़कर बड़ी कक्षाओं के 503 छात्र-छात्राएं ने करीब 13 सौ बच्चों को टोलियों में पढ़ाने का काम किया। इसके लिए शिवानी ने उन्हें सम्मानित भी किया।
वाट्सएप ग्रुप और वीडियो को बनाया माध्यम:
बंकी की भोजपुर गढ़ी की ऋचा शर्मा ने भी बच्चों की पढ़ाई जारी रह सके इसके लिए व्यक्तिगत प्रयास किए। इसके लिए उन्होंने अभिभावकों का वाट्सएप ग्रुप बनाकर उन्हें जागरूक किया। इसके बाद वीडियो बनाकर और क्विज के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला जारी रखा। इसमें उन्होंने स्कूल की साथी शिक्षिकाओं को भी जोड़ा। ऋचा बताती हैं कि इसी का असर रहा कि बच्चों की पढ़ाई के प्रति रुचि बनी रही और एक मार्च से स्कूल खुलने पर बच्चे उत्साह के विद्यालय पहुंच रहे हैं।