चैनपुरवा ब्रांड मोमबत्ती से फैल रहा समृद्धि का उजियारा
अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस पर विशेष। गुजरात और दिल्ली से भी आर्डर मिल रहे। अवैध शराब के धंधे छोड़कर आत्मनिर्भर बनीं।
राघवेंद्र मिश्रा, बाराबंकी
कच्ची शराब बनाने में मशहूर चैनपुरवा गांव की महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की राह पकड़ ली है। अवैध कारोबार को छोड़कर गांव की महिलाओं ने मोमबत्ती बनाकर स्वावलंबन की राह अपनाई, वहीं घरों को रोशन करने के साथ ही उनकी चौखट पर भी समृद्धि का उजियारा बिखरा। गांव में तकरीबन 25 घरों की महिलाएं यह काम कर रही हैं, जो कि अन्य के लिए नजीर बन चुकी हैं।
दिल्ली और गुजरात से मिल रहे आर्डर : रामनगर क्षेत्र के चैनपुरवा गांव की महिलाओं की हाथ निर्मित मोमबत्ती (कैंडल) के लिए प्रदेश के अलावा दिल्ली और गुजरात से भी ऑर्डर मिल रहे हैं। चैनपुरवा ब्रांड मोमबत्ती की डिजाइन भी काफी आकर्षक है। लोग इनको उपहार में भी देने के लिए भी खरीद रहे हैं। प्रशिक्षित पांच महिलाएं सुंदारा, कंचन, रीना, सीता देवी और जगराना के साथ ही 25 घरों की महिलाएं कारोबार से जुड़ी हुई हैं।
दस लाख रुपये तक बिक्री की उम्मीद : चैनपुरवा गांव की महिलाएं ग्लास, फ्लूटी, स्टिक समेत कई अलग-अलग डिजाइन की मोमबत्ती तैयार कर रही हैं, जो कि आमतौर पर बाजार में अन्य किसी ब्रांड से ज्यादा आकर्षक हैं। एक लाख मोमबत्ती बिक चुकी हैं और करीब 10 लाख की बिक्री होने की उम्मीद है।
महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर : रामनगर थाने का चैनपुरवा गांव दशकों से कच्ची शराब के अवैध धंधे के लिए बदनाम था। करीब एक माह पहले एसपी डॉ. अरविंद चतुर्वेदी ने चौपाल आयोजित कर महिलाओं को शराब के धंधे से मुक्त होकर आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प दिलाया था।
घरेलू कार्य के साथ बना रहीं मोमबत्ती : महिलाएं प्रतिदिन करीब 250 मोमबत्ती तैयार कर लेती हैं। प्रत्येक पर इन्हें एक रुपये की बचत हो रही है। दस, पंद्रह व पचास रुपये वाली मोमबत्ती भी बनाई है।
ऐसे बनती है मोमबत्ती : सुंदारा, कंचन व रीना बताती हैं कि मोम, धागा, गिलास व मोमबत्ती के सांचे आदि सामग्री खरीद कर लाती हैं। मोम को पिघलाने के बाद सांचे में डालकर मोमबत्ती बनाई जाती है।