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डेंजर जोन में आबादी को नहीं मिला स्थायी हल

मत-विमत डेंजर जोन में लाखों की आबादी को नहीं मिला स्थाई हल मत-विमत डेंजर जोन में लाखों की आबादी को नहीं मिला स्थाई हल मत-विमत डेंजर जोन में लाखों की आबादी को नहीं मिला स्थाई हल मत-विमत डेंजर जोन में लाखों की आबादी को नहीं मिला स्थाई हल मत-विमत डेंजर जोन में लाखों की आबादी को नहीं मिला स्थाई हल

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 01:21 AM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 01:21 AM (IST)
डेंजर जोन में आबादी को नहीं मिला स्थायी हल
डेंजर जोन में आबादी को नहीं मिला स्थायी हल

बाराबंकी : नेपाल राष्ट्र से घाघरा नदी में छोड़े जाना वाला पानी जिले की रामनगर, फतेहपुर और सिरौलीगौसुपर तहसीलों में कहर बरपाता है। इससे इतर गर्मी के मौसम में आग यहां के झोपड़ीनुमा घरों को मिनटों में लील जाती है। हर वर्ष बाढ़ के बाद अग्नि की विभीषिका से गांव के गांव उजड़ जाते हैं। यह समस्या चुनावी मुद्दा ही नहीं बनता है। इस पर लोगों ने खुलकर अपने विचार रखे।

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घाघरा नदी के किनारे बसी चार सौ से अधिक गांवों की लाखों की आबादी तलवार की धार पर रहती है। तीन तहसील में से दो तहसील रामनगर और फतेहपुर में आजादी के बाद से अब तक स्थाई अग्निशमन केंद्र की स्थापना नहीं हो सकी है। नतीजा हर बार गर्मी आती है और बाढ़ की तरह ही आग ग्रामीणों के अरमानों को पानी फेरकर चली आती हैं।

कृष्ण मोहन त्रिवेदी, किसान मीतपुर, रामनगर।

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प्रति वर्ष दर्जनों लोगों के मरने और सैकड़ों लोगों के झुलसने के बावजूद तहसील फतेहपुर और रामनगर में अग्निशमन केंद्र की स्थापना नहीं हो सकी है। हैरत की बात तो यह है कि कुर्सी और रामनगर विधान सभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तराई के गांवों से होकर एक विधायक से मंत्री बनने तक का सफर तय किया लेकिन इस बार चुनाव के दौरान मुद्दा नहीं बन सका। समस्या के निदान की दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाए गए। इसका ही नतीजा है कि प्रतिवर्ष करोड़ों की धन संपदा मिनटों में राख हो जाती है।

दिलीप सिंह, किसान, समराय।

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अग्नि के अलावा यहां जुलाई से सितंबर तक बाढ़ रहती है, जिसमें हजारों बीघा फसल बाढ़ में डूब जाती है, कभी बांध टूटता है तो कभी ्रभ्रष्टाचार के दीमक से बांध बह जाता है। उस स्थिति में किसानों की फसलें तबाह हो जाती है।

रामकृपाल यादव, किसान, लहाड़रा।

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बाढ़ से भी लोगों को जूझना पड़ रहा है। इसका स्थाई हल अब तक प्रशासन और सरकारों के पास नहीं है। अब न ही बाढ़ और अग्नि से जलते घरों की समस्या को मुद्दा बनाया जाता है। हमारे पास जमीन एक हेक्टेयर से ऊपर है, तराई क्षेत्र में अधिकांश गन्ने की फसल की जाती लेकिन सरकार की नीतियों से तंग आकर गन्ना खड़ा है लेकिन पर्चियां न मिल पाने से फसल का नुकसान होता है, सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

सुरेश चंद्र पांडे, किसान, लहाड़रा।


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