लगी पिता की दिल पर बात, चले गए थे लंदन
शैलेंद्र शर्मा बांदा बहुत पुरानी बात है। जिले से विदेश जाने वाली पहली शख्शियत उस समय की य
शैलेंद्र शर्मा, बांदा
बहुत पुरानी बात है। जिले से विदेश जाने वाली पहली शख्शियत उस समय की यादें साझा करने के लिए भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। कटरा निवासी स्व. रामगोपाल शर्मा के सबसे बड़े पुत्र हरेकृष्ण शर्मा को पिता की बात दिल पर ऐसी लगी कि नौकरी छोड़ लंदन की राह थाम ली। करीब 12 साल बाद लौटे और तीन माह बाद ही फिर चले गए। बीच-बीच में आए, बाद में स्वजन से संपर्क भी टूट गया। नतीजा, लंदन में ही उनकी मौत हो गई और घर के लोग बेखबर रहे। यह उस समय की बात है, जब इंटरनेट तो दूर संचार के भी इतने साधन नहीं थे। यह जिले के पहले प्रवासी करार दिए जाते हैं।
बहन छाया ने बताया कि पिता का ईंट-भट्टे का कारोबार था। पांच भाइयों और चार बहनों में सबसे बड़े हरेकृष्ण शर्मा थे। जबलपुर यूनिवर्सिटी से शिक्षा पूर्ण करने के बाद नैनीताल में इंजीनियर नियुक्त हुए, इसके बाद कोटा राजस्थान में नौकरी की। घर आए तो बातों-बातों में पिता ने कह दिया कि ब्राह्मण के लड़के कभी विदेश नहीं जा पाते हैं। हरेकृष्ण ने पिता की इस बात को दिल पर लिया और अपने लिए एक प्रकार से चुनौती मानते हुए लंदन चले गए।
फफक कर रोए थे पिता, तीन बाद फिर लौटे विदेश
छाया बताती हैं कि घर पर चार भाई कृष्णमुरारी, राधाकृष्ण, कृष्णकांत और रमाकांत के अलावा बहनें माया, आशा व रजनी के साथ सबसे छोटी वह ही बचीं। करीब 12 वर्षों बाद जब लौटे तो पापा और भैय्या फफक कर रोए थे। उनका मिलन जिसने देखा था, वह आंसू बहा रहा था। करीब तीन माह बाद ही वह फिर लौट गए। उसके बाद छह-छह साल के अंतराल पर आए, लेकिन कुछ दिन बाद ही फिर चले गए। भैय्या ने शादी नहीं की थी। बातचीत का कोई साधन भी नहीं था। बस कभी-कभार चिट्टी जरूर आ जाती थी।
पड़ोसी ने भी साझा की यादें
पड़ोस में रहने वाले शांतनु चतुर्वेदी बताते हैं कि एक बार उन्होंने रात में हरेकृष्ण दद्दा की चर्चा की। सुबह दद्दा को रिक्शे से उतरते देखा तो? दौड़कर अंदर गए। जिज्जी (हरेकृष्ण की मां आशा शर्मा) और बाबू जी (पिता रामगोपाल शर्मा) से कहा कि अगर दद्दा आ जाएं तो? यह सुन सभी उनका चेहरा देखने लगे, तब उन्होंने दद्दा के कहा कि ऊपर चले आएं। जैसे ही पिता और बेटे ने एक-दूसरे को देखा था तोगले लगकर फफक पड़े। उसके बाद दद्दा का पता नहीं चला।
घर नहीं पहुंची मौत की सूचना, एक माह रखा गया था शव
घर पर रहने वाली बहन छाया व माया बताती हैं कि आखिरी बार लंदन गए तो कुछ पता ही नहीं चला। चिट्ठी भी आनी बंद हो गई। शांतनु बताते हैं कि इंटरनेट आया तो घर में कंप्यूटर लगवाया। बेटे ने बताए गए पते पर सर्च किया तब पता चला कि करीब एक माह पहले ही मौत हो चुकी है। माया के मुताबिक विदेश मंत्रालय भी चिट्ठी भेजी, पर कोई जवाब नहीं मिला। एक माह बाद एक पत्र मिला कि उनका सामान वहीं रखा है। एक माह तक शव को सुरक्षित रखा गया था। किसी वजह से वह लोग लंदन नहीं जा पाए। शांतनु के बेटे सचिन ने सामान भी नोट करके रखा था, आज तक वहीं पड़ा है। नम आंखों से माया ने बताया कि भैय्या की आखिरी चिट्ठी में लिखा था कि अब नहीं आएंगे और सच में वह कभी नहीं आए।