हवा को जहरीला कर रहीं गुणवत्ता विहीन ई-रिक्शा की बैटरी
घटिया बैटरी के इस्तेमाल के चलते
हवा को जहरीला कर रहीं गुणवत्ता विहीन ई-रिक्शा की बैटरी
जागरण संवाददाता, बांदा: गुणवत्ता विहीन बैटरी के प्रयोग से जनपद में ई-रिक्शा पर्यावरण के लिए मुसीबन बनते जा रहे हैं। बैटरी में गुणवत्ता न होने से वह भी छह माह में ही खराब हो जा रही हैं। इसको दोबारा प्रयोग में लाने से हवा व मिट्टी की सेहत खतरनाक लेड धातु से खराब हो रही है। यही नहीं लीक होने पर इन बैट्रीयों का केमिकल जमीन, पानी और वातावरण में घुलकर ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन रही है। जो पर्यावरण के लिए घातक हैं।
ई-रिक्शा को आमतौर पर पर्यावरण की सेहत का ध्यान रखने वाला परिवहन का साधन माना जाता है। पेट्रोल-डीजल जैसा ईंधन इस्तेमाल न होने से इसमें से धुआं नहीं निकलता है। जनपद में होने वाले प्रदूषण के लिए 39 फीसदी तक वाहनों के धुएं को जिम्मेदार माना जाता है। ऐसे में ई-रिक्शा पर्यावरण के लिहाज से ज्यादा अच्छे साधन माने जाते हैं, लेकिन घटिया बैटरी के इस्तेमाल के चलते ई-रिक्शा भी आबोहवा के लिए मुसीबत का कारण बनते जा रहे हैं।
जनपद में चलने वाले ज्यादातर ई-रिक्शा में घटिया किस्म की बैटरी का इस्तेमाल होता है। यह बैटरी छह से आठ महीने में खराब हो जाती है। इन रिक्शों में इस्तेमाल होने वाली लोकल बैटरी का सेट 30 हजार के आसपास आता है। जबकि, ब्रांडेड कंपनी की बैटरी पचास हजार के लगभग पड़ती है। कीमतों में इस अंतर के चलते बड़े पैमाने पर लोकल बैटरी का इस्तेमाल हो रहा है। ई-रिक्शा चालकों का कहना है कि पुरानी बैटरी को लौटाकर 18 से बीस हजार में दूसरी बैटरी उन्हें मिल जाती है।
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इस तरह दूषित होती है हवा
अवैध तौर पर बैटरी बनाने वाले आमतौर पर पुरानी बैटरियां खरीद लेते हैं। इसे गलाकर इसमें से लेड की प्लेट को अलग कर लिया जाता है। प्लास्टिक कवर, वायर बाक्स, लेड प्लेट और सल्फ्यूरिक एसिड आदि लगाकर नई बैटरी तैयार कर दी जाती है। बैटरी को गलाने की प्रक्रिया में खतरनाक लेड धातु के कण मिट्टी और हवा में घुल जाते हैं जो सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक होते हैं।
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...लेकिन, जरूरी भी हैं
बीते चार-पांच सालों में ई-रिक्शा का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। छोटी दूरी और गली-मोहल्लों की अंदरूनी सड़कों में परिवहन के प्रमुख साधन के तौर पर इसका इस्तेमाल हो रहा है। घटिया बैटरी के चलते होने वाले प्रदूषण को छोड़ दिया जाए तो ये पेट्रोल या सीएनजी जैसे ईंधन की बचत भी करते हैं। इस हिसाब से पर्यावरण के लिए अच्छे माने जाते हैं।
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पुरानी बैटरी से लेड को अलग करने व जलाने पर वातावरण में खतरनाक लेड धातु के कण मिट्टी और हवा में मिल जाते है। जो मानव के लिए बेहद ही खतरनाक होते हैं।
घनश्याम, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण विभाग, बांदा
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30 हजार के लगभग की आती है लोकल कंपनी की बैटरी।
50 हजार के लगभग खर्च करने पड़ते हैं ब्रांडेड कंपनी की बैटरी के लिए।
7 हजार से ज्यादा ई-रिक्शा चल रहे हैं जिले भर में।
2749 ई-रिक्शा पंजीकृत है जनपद में।