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आक्सीजन की किल्लत से टूट रही थी सांसों की डोर

केस एक शहर के मुहल्ला सिविल लाइन्स निवासी सर्वेश कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रमण से 25

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Jul 2021 11:22 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 11:22 PM (IST)
आक्सीजन की किल्लत से टूट रही थी सांसों की डोर
आक्सीजन की किल्लत से टूट रही थी सांसों की डोर

केस एक

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शहर के मुहल्ला सिविल लाइन्स निवासी सर्वेश कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रमण से 25 अप्रैल को छोटे भाई की तबीयत बिगड़ी थी। उसे मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया था। लेकिन आक्सीजन के लिए मारामारी मची थी। जो सिलिडर मिलते थे तो उसमें चंद समय के लिए आक्सीजन रहती थी। 29 अप्रैल को एक वार्ड से दूसरे वार्ड में ले जाते समय आक्सीजन बीच में खत्म हो गई थी। जिसमें भाई की मौत हो गई थी। केस दो

कस्बे के मोहल्ला तिलक नगर निवासी रणवीर सिंह ने बताया कि उसकी पत्नी को अप्रैल माह में संक्रमित होने के बाद सांस लेने में दिक्कत थी। सीएचसी के बाद जिला अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। अस्पताल में आक्सीजन न मिलने पर मध्यप्रदेश के अजयगढ़ में रिश्तेदारों ने आक्सीजन की व्यवस्था की थी। जहां चार पहिया वाहन से ले जाते समय रास्ते में मरीज ने दम तोड़ दिया था। केस तीन

पंचायत चुनाव के दौरान फतेहगंज क्षेत्र के ग्राम कल्याणपुर निवासी मीराबाई पटेल ने बताया कि पति संक्रमित हो गए थे। सर्दी, बुखार से पीड़ित होने के साथ ही सांस लेने में तकलीफ होने पर जिला अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां आक्सीजन की खासी मारामारी थी। काफी जद्दोजहद के बाद आक्सीजन समय से न मिलने के चलते उनकी मौत हो गई थी। जागरण संवाददाता, बांदा : कोरोना संकट काल की पहली व दूसरी लहर में आक्सीजन की जमकर किल्लत थी। समय पर भरपूर आक्सीजन न मिलने से मरीजों की सांसें टूट रहीं थीं। उनको खोने वाले स्वजन का दर्द किसी को दिखाई नहीं पड़ रहा था। खुद ही वह आक्सीजन की मारामारी की पीड़ा झेल रहे थे।

कोरोना संकट काल की पहली लहर में जहां 43 लोगों की मौत हुई थी, वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दूसरी लहर में 110 लोगों ने दम तोड़ा है। कोरोना संक्रमण को लेकर सबसे ज्यादा परेशानी आक्सीजन की रही है। क्योंकि इसमें फेफड़ों में निमोनिया हो रहा था। संक्रमण के फेफड़ों में अधिक अटैक करने से आक्सीजन मरीज के ब्लड में नहीं पहुंच रही थी। उसे सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। आक्सीजन की मांग अस्पतालों में बढ़ी रही है। दूसरी लहर में जब कोरोना चरम पर था। कोविड-19 के प्रमुख अस्पताल राजकीय मेडिकल कालेज में रोजाना 250 से 300 जंबो सिलिडर की खपत रही है। जिसमें करीब 2100 क्यूबिक मीटर आक्सीजन की मात्रा रहती है। इसी तरह जिला अस्पताल में रोजाना करीब 70 से 80 सिलिडर यानि 490 क्यूबिक मीटर आक्सीजन की खपत रहती थी। दोनों अस्पताल प्रशासन के मुताबिक आक्सीजन खपत के मुताबिक उपलब्ध कराने का प्रयास रहता रहा है। हालांकि जिनके अपनों ने जान गंवाई, उन्होंने आक्सीजन की असली दिक्कत का दर्द झेला है। ऐसे लोग बताते हैं कि अस्पताल में खाली सिलिडर लगाये जाते रहे। जो चंद समय में ही खत्म हो जाते थे। जो सक्षम थे, वह ब्लैक या दूरदराज इलाके से खरीदकर अपनों की जान बचाने की कोशिश में लगे रहते थे। एक-एक सिलिडर के लिए अस्पतालों में गिड़गिड़ाना पड़ता था। उनके सामने अपने मरीज की जान बचाने की फिक्र रहती थी।

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- कानपुर व मौदहा आदि जगहों से आक्सीजन के भरे सिलिडर मंगवाए जाते थे। अब जनपद में पांच आक्सीजन प्लांट तैयार हो रहे हैं। इससे अब आक्सीजन की कोई दिक्कत नहीं होगी।

- डा. आरएन प्रसाद, प्रभारी सीएमओ

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आक्सीजन के लिए यह भी रहे परेशान : आक्सीजन उपलब्ध न होने की परेशानी उन तीमारदारों ने भी झेली है। जिनके संक्रमित मरीज अस्पतालों से ठीक होकर अब घर पहुंच चुके हैं। तीमारदार मोना पांडेय स्टेशन रोड डिग्गी चौराहा व कटरा के छोटू ने बताया कि उनके मरीजों की जान आक्सीजन न मिलने से खतरे में रहती थी। अस्पतालों में आक्सीजन की मांग करने पर किल्लत होने का जवाब मिलता था। बहुत मांगने पर जो सिलिडर मिलते थे। उनमें गैस कुछ ही समय के लिए होती थी। हालांकि अब उनके मरीज उपचार के बाद ठीक होकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।


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