अंग्रेजों की रेल भारत सरकार चलाने में फेल
संवाद सहयोगी, नरैनी : अतर्रा से ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल कालिंजर होते हुए मध्य प्रदेश के औ
संवाद सहयोगी, नरैनी : अतर्रा से ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल कालिंजर होते हुए मध्य प्रदेश के औद्योगिक शहर सतना तक जाने के लिए ब्रिटिश शासन काल की प्रस्तावित रेल परियोजना उपेक्षा का शिकार है। रेलवे द्वारा चिह्नित की गई लाइन के पत्थर आज भी खेतों में प्रतीक चिह्न बने हुए है। जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा से 72 वर्ष बाद भी ये रेल लाइन आज भी सपना बनी हुई है।
ब्रिटिश शासन काल में करीब 1946 में अतर्रा चावल मंडी से का¨लजर होते हुए मध्यप्रदेश के सतना तक करीब 125 किलोमीटर तक लंबी रेल लाइन का प्रस्ताव स्वीकृत किया था। इसके लिए चिह्नित स्थलों पर ग्रेट इंडियन पेनिनसुला (जीआइपी) रेलवे विभाग के पत्थर खेतों में लगाए गए थे।
मगर 1947 में देश आजाद होने के बाद केंद्र व प्रदेश में बनी सरकारों ने इस रेल परियोजना की कोई सुधि नहीं ली और न ही किसी राजनीतिक पार्टी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया। परिणामस्वरूप ये रेल परियोजना क्षेत्रवासियों के लिए सपना बनकर ही रह गई। रेलवे सूत्रों की माने तो अभियंताओं की एक टीम ने स्थलीय निरीक्षण कर रेल लाइन का नक्शा तैयार करके पटरी बिछाए जाने का नक्शा भी शासन को भेजा था। हालांकि 5 नवंबर 1951 में भारत सरकार ने ग्रेट इंडियन पेनिनसुला (जीआइपी ) का नाम बदलकर भारतीय मध्य रेलवे कर दिया। मगर केंद्र सरकार ने इस परियोजना पर कोई ध्यान नहीं दिया। आज भी खेतों में प्रस्तावित रेल लाइन के चिन्हित स्थलों पर पत्थर लगे हैं।
सांसद ने फिर शुरू की पहल
सांसद भैरो प्रसाद ने एक बाद फिर इस रेल परिजनों को की ओर एक कदम बढाया उन्होंने बताया कि इस संबंध में संसद में प्रश्न किया गया था। रेल लाइन का नए सिरे से सर्वे कराया जाएगा। इसके अलावा फतेहपुर से बबेरू, अतर्रा होते हुए सतना तथा फतेहपुर से बांदा-नरैनी का¨लजर होते हुए मध्यप्रदेश के सतना तक नई रेल लाइन बिछाए जाने हेतु सर्वे हो रहा है। रिपोर्ट आने तथा जमीन उपलब्ध होने पर ही यह रेल लाइन बिछाने का कार्य रेलवे करेगा।