सरकार की उदासीनता से नहीं बहुर पाया हथकरघा उद्योग
संवाद सहयोगी, बबेरू : बुंदेलखंड में औद्योगीकरण को लेकर प्रशासनिक अनदेखी सभी की समझ से पर
संवाद सहयोगी, बबेरू : बुंदेलखंड में औद्योगीकरण को लेकर प्रशासनिक अनदेखी सभी की समझ से परे है। नए उद्योग-धंधे लगाने की बात तो दूर पुरानों का भी यहां कोई पुरसाहाल लेने वाला नही हैं। चौतीस वर्ष पहले भदेहदू में लगाया गया हथकरघा उद्योग इसका जीता-जागता उदारहण है। इससे रोजी-रोटी की आस और क्षेत्र के विकास की आस लगाए सैकड़ों जुलाहों के परिवार भुखमरी से जूझ रहे हैं। कई परिवार पलायन कर चुके हैं।
तहसील क्षेत्र के ग्राम भदेहदू में स्पेशल कम्पोनेंट योजना के तहत 1983 में हथकरघा उद्योग की नींव रखी गयी थी। इसकी नींव पड़ते ही ग्राम पंचायत अंतर्गत ग्राम अकौना, साथी, फुंफदी, दफ्तरा, कोर्रम, क¨रगा सहित तमाम गांवों के जुलाहा परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गयी। उन्होने साहूकारों व सरकारी संस्थाओं से ऋण लेकर सूत काटने वाले चरखे भी खरीद लिए। लेकिन उनकी खुशियां जल्द काफूर हो गयी। संसाधनों की कमी व कच्चे माल की समुचित आपूर्ति न हो पाने के कारण करीब 15 लाख की लागत से लगाये गये इस उद्योग ने पहले ही चरण में दम तोड़ दिया। इससे आहत परिवार जुलाहा परिवार के कारीगरों ने जैसे-तैसे चरखों को कबाड़ के भाव बेंचकर ऋण अदा किया। ये लोग रोजी रोजगार के लिए महानगरों की ओर धीरे-धीरे पलायन कर गये। वर्ष 1995 में पुन: पांच लाख खर्च कर यह उद्योग शुरू हुआ। मगर नतीजा पहले जैसा ही रहा। अब यहां न तो दरवाजों का पता है और न ही टीन शेड का। फिलहाल इस कीमती भवन पर गांव के लोग अपने पालतू जानवरों को बांधने के लिए कर रहे है। इस संबंध में ग्राम प्रधान राममूरत पटेल का कहना है कि उद्योग के न चलने से गांव के साथ-साथ आसपास गांव के जुलाहों के परिवार पलायन कर गये हैं। सरकार यदि इस उद्योग को चलाने में अक्षम हो तो इसमें एफसीआई गोदाम व गेहूं खरीद केन्द्र खोला जाए ताकि ग्रामीणों को इसका लाभ मिल सके ।
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- हमारे पूर्वज इस काम को करते थे। लेकिन जब हथकरघा उद्योग लग रहा था तो खुशी हुई। करीब 60 से 70 लोगो के आवेदन भी जमा किए। सामान भी खरीदा लेकिन अचानक बंद होने से बेरोजगार हो गए। - गंगाचरन - मशीन आयी और सूत बनाने के लिए रुई की भी व्यवस्था हुई। लेकिन हथकरघा उद्योग को लाने वाले इस गांव के नेता की हत्या कर दी गई। इसके बाद यह उद्योग वहीं से बंद हो गया। -कालिका प्रसाद - सूत कातने का काम हमारे बुजुर्ग घर में करते थे। उद्योग लगने के बाद आस जगी की हमारे बच्चो को रोजगार मिलेगा। लेकिन खरीददार व कच्चे माल की कमी ने धंधे को चौपट कर दिया। - फूलकुमारी - सास ससुर बताते है कि सूत बनाने वाली फैक्ट्री ने हम लोगो को चरखा लेने के लिए लोन देने का प्रयास किया। लेकिन अचानक बंद हो गयी। अब यदि सरकार हथकरघा उद्योग चालू कराती है तो बाहर मजदूरी कर रहे लड़कों को बुलाकर परिवार सहित काम करेंगे। - चमेली देवी - जिन औजारों से सूत बनाने का काम होता था वह पुराने हो गए। नए महंगे होने से उपलब्ध नहीं हो पाए। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने कोई प्रयास नहीं किया। अब सुविधायें न होने से बेरोजगार हैं। -गौरी शंकर
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बोले जनप्रतिनिधि :
विधायक चंद्रपाल कुशवाहा का कहना कि कांग्रेस शासन काल में यह योजना चालू हुई और बंद भी। बहुत पुराना मामला है बंद होने का कारण जानने के बाद यदि चालू होने की स्थित में है तो मुख्यमंत्री से बात कर प्रयास करूंगा।
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साहब बोले :
यह बहुत पुराना मामला है। फिर भी किस विभाग से योजना संचालित थी क्यो बंद हुई इसके कारणों की जानकारी ली जायेगी।
- अर¨वद तिवारी
एसडीएम