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हावी हुए मोबाइल के खेल, बच्चे भूल गए छुक-छुक रेल

बिहारी दीक्षित अतर्रा (बांदा) खेल स्वस्थ रहने का टॉनिक है। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Jun 2021 05:25 PM (IST)Updated: Thu, 24 Jun 2021 05:25 PM (IST)
हावी हुए मोबाइल के खेल, बच्चे भूल गए छुक-छुक रेल
हावी हुए मोबाइल के खेल, बच्चे भूल गए छुक-छुक रेल

बिहारी दीक्षित, अतर्रा (बांदा)

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खेल स्वस्थ रहने का टॉनिक है। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में खेलों का स्वरूप बदल गया है। ज्यादातर विदेशी गेम बच्चों पर हावी हैं, जो फायदे के बजाय मानसिक रूप से कमजोर बना रहे हैं। खेलों का पैटर्न बदला तो बच्चे एक-दूसरे की लाइन बनाकर छुक-छुक कर रेल गाड़ी चलाने, खो-खो, कबड्डी जैसे खेलों को भूल गए। जबकि यह परंपरागत खेल मनोरंजन के साथ मासूमों की सेहत के लिए फायदेमंद हैं। गलियों की चहल-पहल गायब हुई और मोबाइल पर चलती अंगुलियां ही खेल की पसंद बताने को काफी हैं।

समय के साथ कदमताल करती तकनीक ने जहां हर काम को आसान बनाया है, वहीं आदमी के सामने कुछ मुश्किलें भी खड़ी की हैं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव 'बचपन' पर पड़ा है। एक ऐसी अवस्था में जब बच्चे सबसे ज्यादा अपने परिवार, समाज और दोस्तों के करीब होते हैं, वे अब अकेलेपन के शिकार होकर तकनीक के वशीभूत होते जा रहे हैं। कभी खेल के मैदान में घंटों समय बिताने वाले बच्चों को दोस्तों, साथियों की जगह मोबाइल गेम का साथ भा रहा है। उनकी दुनिया मोबाइल में विदेशी खेलों तक ही सीमित हो गई है। साथी, दोस्त की कमी तकनीक ने ले ली है। इसके गंभीर नतीजे भी सामने आ रहे हैं। तकनीकी खेलों ने न सिर्फ बच्चों को एक सीमित दायरे का कैदी बना कर रख दिया है, बल्कि वह कई तरह की मानसिक और शारीरिक बीमारियों का शिकार भी हो रहे हैं। साथ ही शिक्षा भी प्रभावित हो रही है। बीते करीब डेढ़ दशक में बच्चों के खेलने के तरीकों में बड़ा बदलाव आया है। आज करीब सत्तर फीसद बच्चे परंपरागत खेलों के बजाए ऑनलाइन गेम के साथ समय बिताते हैं। पहले जहां लुकाछिपी, गिल्ली डंडा, रस्सी कूद, क्रिकेट, फुटबाल, पतंग उड़ाने जैसे पारंपरिक खेल बच्चों को लुभाते थे, वहीं अब वे इंडोर गेम के प्रति ज्यादा आकर्षित हैं। शारीरिक व्यायाम और एकाग्रता वाले खेलों की जगह अब बच्चे हिसक खेल ज्यादा पसंद करने लगे हैं। इससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास बाधित हो रहा है और समाज से वे अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। ------------------

मोबाइल में मौजूद गेम

बैटल ग्राउंड ऑफ इंडिया, कॉल्स ऑफ ड्यूटी, फ्री फायर, कैश ऑफ क्लेम व कैंडी क्रैश जैसे अन्य खेल मोबाइल में उपलब्ध हैं। हालांकि ब्लू व्हेल व पबजी बंद हो गए हैं।

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क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

मोबाइल में मौजूद विदेशी खेलों में ज्यादातर फाइटिग है। जिससे बच्चों में आक्रमकता बढ़ती है। धीरे-धीरे उसके स्वभाव में परिवर्तन होने लगता है और वह अपने भाई-बहनों व अन्य स्वजन से छोटी छोटी बातों में मारपीट करने लगते हैं। साथ ही डिप्रेशन बढ़ने से एकाग्रता कम होती है। जिससे उनकी शिक्षा भी प्रभावित होती है। इससे बचाव के लिए अभिभावकों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान समय समय पर ध्यान देने के साथ ही बच्चों के साथ अधिक समय गुजारने का प्रयास करना चाहिए। -जनार्दन प्रसाद त्रिपाठी, मनोवैज्ञानिक सलाहकार बांदा

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प्रतिक्रिया

- कोरोना संक्रमण के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान मेरा 12 वर्ष पुत्र मोबाइल फोन चलाने लगा। धीरे धीरे चिड़चिड़ापन देख पता लगाने पर ऑनलाइन खेल फ्री फायर खेलने से स्वभाव परिवर्तन होने की जानकारी हुई है। उसके बाद बच्चे के साथ ज्यादा समय देते हुई उसकी आदत छुड़ाई है। -अर्जुन गुप्ता -व्यापार के चलते बड़े भइया बच्चों को समय नहीं दे पा रहे थे। जिसके चलते आठ वर्ष का भतीजा आर्यन मोबाइल गेम का आदि हो गया था। उससे मोबाइल छीनते ही वह उग्र हो जाता था। दो महीने प्रयास करने के बाद अब उसकी आदत से छुटकारा मिला है। -राजेश कुमार


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