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इस बार भरा-पूरा नजर आएगा दाल का कटोरा

बुंदेलखंड दलहनी व तिलहनी फसलों का कटोरा जाता है। प्रकृति के रूठने और अन्ना प्रथा बढ़ने के बाद दो दशक से लगातार दलहन उत्पादन में बेहद कमी आई है। लेकिन अब कृषि विश्वविद्यालय ने दाल के कटोरे को समृद्धि करने की ठानी है। किसानों ने इस वर्ष जिले में 51 हजार हेक्टेअर में अरहर मूंग और उड़द की बुवाई की है। मौसम भी फसलों के अनुकूल है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 Jul 2019 10:33 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jul 2019 06:20 AM (IST)
इस बार भरा-पूरा नजर आएगा दाल का कटोरा
इस बार भरा-पूरा नजर आएगा दाल का कटोरा

जागरण संवाददाता, बांदा : बुंदेलखंड हमेशा से दलहन व तिलहन उत्पादन में समृद्ध रहा है। तभी इसे दाल का कटोरा भी कहा जाता है। पिछले दो दशक से प्रकृति के रूठने और अन्ना प्रथा के दंश से दलहन उत्पादन में बेहद कमी आई है। मगर, कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इस बार दाल के कटोरे को समृद्ध करने की ठानी है। विश्वविद्यालय की तकनीक से इस वर्ष जिले में 51 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में अरहर, मूंग और उड़द की बोआई की गई है।

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बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा कई प्लान तैयार किए गए हैं, जिसका क्रियान्वयन खरीफ से उन्नतशील बीज के वितरण के साथ हो रहा है। विश्वविद्यालय ने अरहर का आइपीए-203 प्रजाति का बीज तैयार किया है। इस प्रजाति में रोगों के सहने की काफी क्षमता है और इसका उत्पादन लगभग 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। वहीं सिर्फ एक बार सिचाई की जरूरत पड़ेगी। दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर में तैयार की गई यह प्रजाति बुंदेलखंड के लिहाज से अनुकूल है। इसका दाना बड़े आकार का होता है। बोआई का समय 15 से 30 जुलाई तक है। विश्वविद्यालय लगातार किसानों के साथ अरहर, मूंग व उड़द आदि की तकनीक साझा कर रहा है।

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इस बार हुई बोआई

अरहर : 30000 हेक्टेयर

मूंग : 6000 हेक्टेयर

उड़द : 15000 हेक्टेयर

पिछले वर्ष : 38600 हेक्टेयर

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किसानों को दलहन फसल की नई तकनीक से प्रशिक्षित किया जा रहा है। अरहर की नई प्रजाति खेतों के अलावा मेड़ पर बोई जा सकती है। बोआई के 20 से 25 दिन बाद खरपतवार से निपटने का प्रबंध जरूर किया जाए।

- डॉ. बीके सिंह, कृषि विश्वविद्यालय, बांदा


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