मकर संक्रांति में आसमान में उड़ीं रंग-बिरंगी पतंगे
जागरण संवाददाता बांदा मकर संक्राति में जहां भक्तों ने नदी और तालाबों में डुबकी लगाकर रुद
जागरण संवाददाता, बांदा: मकर संक्राति में जहां भक्तों ने नदी और तालाबों में डुबकी लगाकर रुद्राभिषेक किया। वहीं पर्व पर पतंग उड़ाने का खासा उत्साह रहा। बच्चे व युवाओं की रंग-बिरंगी पतंगे आसमान में उड़ती रहीं। पतंग की दुकानों में बच्चों की पूरी दिन भीड़ बनी रही। पतंग काटने को लेकर बच्चों में आपसी विवाद भी हुए, लेकिन फिर साथ पतंगों की डोर बढ़ाने लगे।
मकर संक्रांति का त्योहार जिले भर में पूरे श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया गया। श्रद्धालुओं ने सुबह से नदी व तालाबों में स्नान किया। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद रुद्राभिषेक किया। ब्राह्मणों व पुरोहितों में खिचड़ी का दान किया। इसके बाद घर-घर खिचड़ी बनी। प्रसाद के रूप में इसी को खाकर दिन की शुरुआत की। शहर के बामदेश्वर मंदिर, संकट मोचन, काली देवी मंदिर सहित अन्य शिवालयों में भक्तों ने रुद्राभिषेक और पूजा अर्चना की। शहर के क्योटरा निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित उमाकांत त्रिवेदी के अनुसार इस दौरान सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस कारण नदियों का पानी वाष्पीकरण होता है। जिससे रोग दूर होते हैं। ठंड का मौसम होने से तिल व गुड़ का सेवन कर सेहत को सर्दी से बचाया जाता है। बुंदेलखंड में आस्था के इस पर्व मे खिचड़ी का दान करने के बाद खाते भी हैं। खिचड़ी खाने से पाचन क्रिया ठीक रहती है। पुराणों में बताया गया है कि इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते है। उत्तरायण सूर्य में जिनकी मृत्यु होती है,वह मोक्ष्य को प्राप्त होते हैं। उधर, मकर संक्रांति पर बच्चों और युवाओं में पतंग उड़ाने को लेकर खासा उत्साह रहा। सुबह से पतंग लेकर छतों व मैदान में जा कर पतंग बाजी करते रहे। शहर में जगह-जगह पतंगों की दुकानों सजी रहीं। इस दौरान बच्चे घर में स्वजन से जिद कर रुपये मांग कर लाते और पतंग खरीद कर फिर जुट जाते। कई जगह पतंग काटने की भी होड़ रही। इसके अलावा कटी हुई पतंग लूटने को बच्चे दौड़ भाग व आपस में विवाद करते देखे गए।
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पहले मानिक कुइयां में होती थी प्रतियोगिता
शहर के कटरा मोहल्ले में पतंग व्यापारी राजेंद्र कुमार ने बताया कि करीब 40 साल पहले तक मोहल्ला कटरा के मानिक कुइया में पंतगबाजी की प्रतियोगिता होती थी। इसे मोहल्ले के ही बचनी सरदार कराया करते थे। इसमें जो विजेता होता था उसे पुरस्कार दिए जाते थे। अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है।