फसलों के साथ मनुष्यों व पशुओं के लिए खातक है गाजर घास
जागरण संवाददाता बांदा गाजर घास (पार्थेनियम) या चटक चांदनी एक-एक वर्षीय शाकीय पौधा है। ये
जागरण संवाददाता, बांदा : गाजर घास (पार्थेनियम) या चटक चांदनी एक-एक वर्षीय शाकीय पौधा है। ये आक्रामक तरीके से फैलता है। इसकी पत्तियां असामान्य रूप से गाजर की पत्ती की तरह होती हैं। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डा. यूएस गौतम ने बताया कि इस समय गाजर घास एक सामाजिक समस्या बन गई है। इसे सामूहिक प्रयास से ही रोका जा सकता है। सभी को अपने घर, कालोनी, गांव, कार्यालय आदि स्थानों से इसे हटाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
कृषि विश्वविद्यालय में चल रहे अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार जागरूकता अभियान में प्रबंधन शोध परियोजना के अन्वेषक डा. दिनेश साह ने कहा कि इसका प्रकोप खाद्यान्न, फसलों में भी देखा गया है। इसकी वजह से फसलों की पैदावार 30 से 40 फीसद तक कम हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए यांत्रिक, रासायनिक व जैविक विधियों का उपयोग किया जाता है। अगस्त माह में इसका प्रकोप सबसे अधिक होता है। अत: इस माह में इसको नष्ट करना सबसे प्रभावी होता है। प्रत्येक वर्ष भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद खरपतवार प्रबंधन निदेशालय द्वारा अगस्त माह में गाजर घास के बारे में जागरूक करने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाता है।
कई बीमारियों की भी है वजह
डा. साह के मुताबिक इस खरपतवार के संपर्क में आने से एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा व नजला जैसी घातक बीमारियां हो जाती हैं। इसे खाने से पशुओं में कई रोग हो जाते हैं। दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आने लगती है। फूल आने से पहले या फूल आने की अवस्था में इसे उखारकर फेंक देना चाहिए ताकि पौधे में बीज बनने से रोका जा सके। हाथ से उखारते समय इसके सीधे संपर्क में आने से बचना चाहिए।
इस दवा का कर सकते प्रयोग
डा. साह ने बताया कि इसे नष्ट करने के लिए ग्लायफोसेट 2 किग्रा सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या मैट्रीब्यूजिन 2 किग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का प्रयोग फूल आने से पहले किया जाना चाहिए। फसलों में इसके नियंत्रण के लिए कृषि विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।