कुएं का पानी, दे रहा ¨जदगानी
बलरामपुर : जहां एक ओर शहरी क्षेत्रों में ओवरहेड टैंक का पानी व मिनरल वाटर पीने के
बलरामपुर : जहां एक ओर शहरी क्षेत्रों में ओवरहेड टैंक का पानी व मिनरल वाटर पीने के बाद भी लोग बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। वहीं थारू जनजाति बाहुल्य गांव भुसहर पुरई के बा¨शदे आज भी कुएं का पानी पीकर निरोग बने हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा के चलते मूलभूत सुविधाओं से वंचित होने के बाद भी यहां रहने वाले थारू परिवार प्रकृतिजन्य उत्पादों के सहारे अपनी निरोगी काया के लिए मशहूर हैं। सरकारी नल का पानी नसीब न होने का इन्हें कोई गम नहीं है। खेतों में दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करने वाले यहां के बच्चों, महिलाओं व बुजुर्गों की कार्यक्षमता इन्हें विशिष्ट बनाती है। खास बात यह है कि थारू परिवार के लोग कुएं को देवता की तरह पूजते हैं। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यक्रमों में कुएं की पूजा के बाद परिक्रमा कर आशीर्वाद लेते हैं।
बो¨रग की नहीं सुविधा : पचपेड़वा विकास खंड मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर थारू जनजाति बाहुल्य गांव भुसहर पुरई के मजरे भौरीसाल व फोगही हैं। हार्ड एरिया होने के चलते यहां बो¨रग की सुविधा नहीं है। जिससे सरकारी नल का पानी नसीब नहीं हो पाता। कहने को तो यहां छह सरकारी हैंडपंप हैं, लेकिन इनमें से तीन खराब पड़े हैं। जिससे यहां रहने वाले लोग पीने व नहाने के लिए कुएं के पानी का ही उपयोग करते हैं।
ग्रामीणों की जुबानी : ग्राम पंचायत भौरीसाल में थारू जनजाति के करीब 105 घर हैं। इनमें फोगही गांव में रहने वाले एक दर्जन से अधिक परिवार कुएं के पानी पर निर्भर हैं। गांव निवासी राजकली, सहरून देवी, मंगल नरायन, सुजीत, गरीबे, नैना, सूरसती देवी, बतासी देवी, लक्ष्मन का उनके दादे-परदादे भी कुएं का ही पानी पीते थे। अब भी परिवार कुएं का ही पानी पीता है। इनका कहना है कि उनके घर के पास एक सरकारी नल लगा था, जो लगने के बाद से ही खराब है। शुरू से कुएं का पानी पी रहे हैं, लेकिन इससे कोई नुकसान व बीमारी नहीं हो सकी। बताया कि इसी कुएं के पानी से नहाते व खाना पकाने में भी इस्तेमाल करते हैं। इसलिए कुएं का पानी इन परिवारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।