भगवानपुर जलाशय में सिल्ट जमा होने से कम हुआ पानी
साइबेरियन पक्षियों के घरौंदे पर लगा ग्रहण किसानों व पर्यटकों में छाई निराशा
बलरामपुर : खेतों की सिचाई व साइबेरियन पक्षियों की पनाहगाह बने भगवानपुर जलाशय का वजूद खतरे में है। जलाशय में सिल्ट जमा होने से इसकी संग्रहण क्षमता कम हो गई है। नवंबर में ही पानी की कमी हो जाने से सिचाई पर ग्रहण लगने की चिता किसानों को सताने लगी है। साथ ही विदेशी मेहमानों के अस्थाई घरौंदा पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। यह हाल तब है, जब सिल्ट सफाई के नाम पर चित्तौड़गाढ़ बांध निर्माण खंड ने करोड़ों रुपये का वारा-न्यारा कर दिया। साफ की गई सिल्ट कहां गुम हो गई, इसका जवाब भी अफसरों के पास नहीं है। चित्तौड़गढ़ बांध निर्माण खंड के अधीन भगवानपुर जलाशय करीब 50 गांवों के खेतों की प्यास बुझाने में सक्षम है। वर्ष 1965 में बने भगवानपुर जलाशय की लंबाई करीब साढ़े चार किलोमीटर है, जबकि इसके तल से 11 मीटर ऊंचाई का बांध बनाया गया है। नहरों के माध्यम से करीब तीन हजार किसानों को सिचाई सुविधा मिलती है। ऐसे में सिल्ट जमा होने के कारण किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
पर्यटन पर भी लगा ग्रहण :
-सिचाई के साथ भगवानपुर जलाशय में लोग पर्यटन की ²ष्टि से भी पहुंचते हैं। बैठने के लिए तीन सीट भी लगाई गई है। प्रकाश की व्यवस्था नहीं है। जल क्रीड़ा के लिए पूर्व में मंगाई गई नाव भी नदारद है। जाड़े में साइबेरियन देशों से आने वाली मनमोहक पक्षियों का भी लुफ्त उठाते हैं, लेकिन लगातार कम हो रहे पानी से उनके प्रवास पर भी संकट है। मंत्री ने मांगा था सिल्ट का हिसाब :
-गैंसड़ी विधायक शैलेश कुमार सिंह शैलू ने प्रदेश के जलशक्ति मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह को पत्र लिखकर सिल्ट सफाई न किए जाने की शिकायत की थी। विधायक ने वर्ष 2017 से 2020 तक सिल्ट सफाई की जांच का भी आग्रह किया था। इस पर जलशक्ति मंत्री ने डीएम को पत्र लिखकर नहरों से निकाली गई सिल्ट के डिस्पोजल व अतिरिक्त सिल्ट की नियमानुसार नीलामी का निर्देश दिया था। इसके बाद कार्रवाई कागजों में गुम हो गई, जिससे सिल्ट के नाम पर साफ हुए बजट का राजफाश नहीं हो सका।
पुराना है प्रकरण :-चित्तौड़गढ़ बांध निर्माण खंड के सहायक अभियंता गोपाल राम का कहना है कि सिल्ट सफाई का प्रकरण पुराना हो चुका है। इसमें जो भी खर्च हुआ है, उसके बारे में उच्चाधिकारियों को पता है।