Move to Jagran APP

लावारिस शवों के वारिस हैं 'शाबान अली'

अमित श्रीवास्तव बलरामपुर भले ही बलरामपुर नीति आयोग के पिछड़े जिलों में शुमार हो लेकि

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 11:28 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 11:28 PM (IST)
लावारिस शवों के वारिस हैं 'शाबान अली'
लावारिस शवों के वारिस हैं 'शाबान अली'

अमित श्रीवास्तव, बलरामपुर :

loksabha election banner

भले ही बलरामपुर नीति आयोग के पिछड़े जिलों में शुमार हो, लेकिन यहां गंगा-जमुनी तहजीब का अनोखा संगम है। इसे चरितार्थ कर रहे नगर पालिका अध्यक्ष प्रतिनिधि शाबान अली समाज सेवा, सद्भाव व समरसता की मिसाल बने हैं। वह लावारिस शवों के वारिस बनकर उसका धर्मानुसार अंतिम संस्कार कराते हैं। दुर्घटना में मृत्यु व कहीं भी अज्ञात शव मिलने की सूचना पर तुरंत पहुंच जाते हैं। हिदू व मुस्लिम धर्मानुसार उसका दाह संस्कार व सिपुर्द-ए-खाक कराते हैं। खास बात यह है कि शवों के अंतिम संस्कार में आने वाला सारा खर्च स्वयं वहन करते हैं। कोरोना महामारी के दौरान भी उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर शवों को कंधा देकर कब्रिस्तान व श्मशान तक पहुंचाया। यही नहीं, कभी भी अपने राजनीतिक लाभ के लिए समाज को बांटने का काम नहीं किया, बल्कि अपने जिले के सौहार्दपूर्ण वातावरण को बनाए रखने में अहम योगदान किया है। समाजसेवा के लिए उप्र मोमिन अंसार सभा ने 2019 में उन्हें लखनऊ में सम्मानित किया है। 15 साल से पिता की मुहिम का कर रहे सम्मान :

-शाबान अली के पिता मोहम्मद हलीम ठेकेदार थे। उन्होंने ही लावारिस शवों का धर्मानुसार अंतिम संस्कार करने की मुहिम शुरू की थी। वर्ष 2006 में उनकी मृत्यु हो जाने पर शाबान अली ने उनकी मुहिम को आगे बढ़ाया। लावारिस शवों का पता लगाने के लिए उन्होंने पुलिस प्रशासन का सहयोग लिया। जब भी सड़क दुर्घटना या अन्य संदिग्ध परिस्थितियों में कोई शव मिलता, तो पुलिस शाबान अली को सूचना देती है। शाबान तुरंत मौके पर पहुंचकर शव को कब्जे में लेते हैं। इसके बाद शव किस धर्म के व्यक्ति का है, पता लगाकर अंतिम संस्कार कराते हैं। 15 साल में वह 1200 से अधिक शवों को सम्मान दिला चुके हैं। धर्म का ऐसे लगाते हैं पता : -शाबान अली बताते हैं कि पुरुष का शव होने पर उसके धर्म का पता आसानी से चल जाता है। महिला का शव होने पर उसके शरीर पर गोदना, पैर में बिछिया, मांग में सिदूर आदि से आसानी से पहचान हो जाती है। यह सब न होने पर पोस्टमार्टम हाउस से जानकारी मिल जाती है। फिर धर्मानुसार उसका अंतिम संस्कार करा दिया जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.