राप्ती मइया करतीं विनाश, मुआवजे की नहीं आस
बलरामपुर कहते हैं कि जब कुदरत ही किसी पर खफा हो जाए तो हर कोई मुंह फेर लेता है। कुछ यही हाल क्षेत्र के बभनपुरवा गांव के बाशिदे का भी है। बीते साल राप्ती नदी के कटान से करीब आठ से अधिक लोगों के खेत व मकान नदी में समा गए थे। कटान पीड़ित मुआवजे के लिए अफसरों की चोखट पर दस्तक देते रहे लेकिन उन्हें झूठे आश्वासन की घुट्टी पिलाई जाती रही।
बलरामपुर :
कहते हैं कि जब कुदरत ही किसी पर खफा हो जाए तो हर कोई मुंह फेर लेता है। कुछ यही हाल क्षेत्र के बभनपुरवा गांव के बाशिदों का भी है। बीते साल राप्ती नदी की कटान से करीब आठ से अधिक लोगों के खेत व मकान नदी में समा गए थे। कटान पीड़ित मुआवजे के लिए अफसरों की चौखट पर दस्तक देते रहे, लेकिन उन्हें झूठे आश्वासन की घुट्टी ही मिली। एक बार फिर राप्ती नदी इस गांव को निगलने के लिए बेताब है, लेकिन सरकारी अमला सिर्फ कागजी आंकड़ेबाजी तक सिमट कर रह गया है। ऐसे में कुदरत की मार झेल रहे कटान पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने के बजाय जिम्मेदार अफसर कागजों में संसाधन मुहैया करा रहे हैं। जिससे उनका दर्द कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है।
छलक उठा ग्रामीणों का दर्द :
-क्षेत्र के बभनपुरवा गांव निवासी मनोराम, प्रेमादेवी, रामभवन का कहना है कि पिछले साल राप्ती नदी ने गांव में खूब तबाही मचाई थी। नदी कटान से उनके घर व खेत कट गए। जिससे वहां लोग पलायन करने को मजबूर हो गए। तबसे मुआवजे के लिए अफसरों का चक्कर काट रहे हैं, लेकिन मामला आश्वासन के आगे नहीं बढ़ सका। सावित्री, सतगुरु, कुनकुन का कहना है कि पिछले साल ग्रामीणों के कई बीघे खेत नष्ट हो गये थे। जिस पर अफसरों ने जल्द मुआवजा दिलाने की बात कही थी। मुआवजा तो नहीं मिल सका, अलबत्ता एक बार फिर घर व खेत तबाह होने के कगार पर है। प्रधान प्रतिनिधि विजय यादव का कहना है कि हर साल कटान रुकने के बाद सब कुछ खत्म हो चुका होता है। फिर से शुरुआत करने के लिए मुआवजे की दरकार रहती है। जिम्मेदार के बोल :
-अपर जिलाधिकारी अरुण कुमार शुक्ल का कहना है कि कटान को रोकने के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे। जांच कराकर पीड़ितों को मुआवजा दिलाया जाएगा।