ममता को आंचल में समेट निभाती रहीं जिम्मेदारी
वैश्विक महामारी कोरोना ने जब पांव पसारे तो हर कोई घरों
बलरामपुर : वैश्विक महामारी कोरोना ने जब पांव पसारे, तो हर कोई घरों में दुबक गया। बाहर निकलकर लोगों से मिलने में भी लोग परहेज करते रहे। इन सबके बीच जिला महिला अस्पताल में तैनात स्टाफ नर्स प्रियंका तिवारी ने अपनी ममता को भुलाकर फर्ज को अहमियत दी। प्रियंका ने नन्ही सी बच्ची भूमि को रायबरेली जिले में अपनी मां के पास छोड़ दिया। यहां रहकर वह मरीजों की सेवा में जुटी हुई हैं। संक्रमण फैलने के डर से वह कई महीने तक अपनी बच्ची से मिलने भी नहीं गईं। अपनी ममता को आंचल में समेटकर एक स्वास्थ्यकर्ता होने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। आज भले ही उसकी अबोध बेटी उससे दूर है, लेकिन तसल्ली है कि वह महफूज है।
रायबरेली के लालगंज निवासिनी प्रियंका की मां संतोष दीक्षित एएनएम व पिता कृष्ण कुमार दीक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं। प्रियंका की तैनाती वर्ष 2015 में बलरामपुर जिला महिला अस्पताल में स्टाफ नर्स के रूप में हुई। गत वर्ष जब कोरोना महामारी ने विकराल रूप धारण किया, उस समय उसकी बेटी भूमि महज डेढ़ साल की थी। रायबरेली के बछरावां में ससुराल है, लेकिन बेटी की देखभाल के लिए सास-ससुर नहीं हैं। पति अपने व्यापार में व्यस्त होते हैं। ऐसे में कोरोना के खिलाफ जंग में मरीजों की सेवा व बेटी की देखभाल एक चुनौती बन गई। वह अपनी मासूम बच्ची को खुद से अलग नहीं करना चाहती थी, लेकिन संक्रमण के बीच उसे साथ रखना खतरे से खाली न था। बेटी की सलामती के लिए प्रियंका ने अपनी ममता को दिल में दबा लिया। बेटी को मां के पास रायबरेली में छोड़ अपने कर्मपथ पर डट गई। लेबर रूप में बतौर स्टाफ नर्स अपनी सेवा देने के साथ कोविड ड्यूटी भी निभाई। हमेशा दिल के पास है बेटी :
प्रियंका कहती हैं कि भले ही उसकी लाडली आंखों के सामने नहीं है, लेकिन वह हमेशा दिल के पास है। बिटिया से मिले तीन माह से अधिक बीत गया है। नाना-नानी के पास उसका लालन-पालन सुरक्षा के साए में हो रहा है। हर मां चाहती है कि उसके बच्चे पास में रहें, लेकिन इस वक्त महामारी से सुरक्षा ज्यादा जरूरी है।