..और लाठी के सहारे हो रही जंगल की रखवाली
नैसर्गिक वातावरण की छटा समेटे सोहेलवा जंगल की
बलरामपुर: नैसर्गिक वातावरण की छटा समेटे सोहेलवा जंगल की वादियों पर माफिया की नजर टेढ़ी है। सुरक्षा संसाधनों के अभाव में दिनोंदिन जंगल के वजूद पर खतरा बढ़ता जा रहा है। वजह, 492 वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल में दुर्लभ वन्य जीवों व बेशकीमती लकड़ियों एवं जड़ी-बूटियों की सुरक्षा मुट्ठी भर वनकर्मियों के सहारे है। जो वनकर्मी तैनात भी हैं, उनके पास आधुनिक शस्त्र नहीं हैं। पुरानी राइफल के सहारे जंगल की सुरक्षा का दावा किया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि पुराने मॉडल के बंदूक के कारतूस भी नहीं है। ऐसे में जंगल तो दूर कर्मी खुद की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं हैं। एक वन दारोगा पर 18 हजार हेक्टेयर का जिम्मा :
सोहेलवा जंगल के रामपुर रेंज में करीब 18 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए महज एक वन दारोगा की तैनाती है। पेड़ों की कटान व वन्यजीवों की सुरक्षा करने के लिए कर्मियों का अभाव है। पुरानी थ्री नॉट थ्री बंदूक का कारतूस न होने पर वन दारोगा को लाठी के सहारे जंगल की सुरक्षा करनी पड़ रही है। अनहोनी की बनी रहती है आशंका :
वन क्षेत्राधिकारी टीएन त्रिपाठी का कहना है कि जंगल की सुरक्षा के लिए बहुत पहले थ्री नॉट थ्री बंदूक मुहैया कराई गई थी। कारतूस के अभाव में में जंक लग जाने से ट्रेगर या खटका भी नहीं दब पा रहे हैं। बेशकीमती इमारती लकड़ी की रखवाली व जंगली जानवरों से जान जोखिम में डालकर सुरक्षा में किसी अनहोनी की आशंका बनी रहती है। ---------------------
जंगल की सुरक्षा के प्रबंध किए गए हैं, लेकिन कर्मियों की कमी है। शस्त्रों की व्यवस्था के लिए उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया है।
रजनीकांत मित्तल, डीएफओ