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जिले में बढ़ रहे एड्स रोगी, 250 मरीजों की मौत

-250 एड्स मरीजों की विभिन्न बीमारियों के कारण चली गई जिदगी -पचपेड़वाउतरौलाबलरामपुर ब्लॉक क्षेत्रों से अधिक निकल रहे मरीज पवन मिश्र बलरामपुर जिले में रोजी रोटी के सिलसिले में गए लोग वहां से एड्स जैसी खतरनाक बीमारी लेकर लौट रहे है। इसकी गवाही जिले में बेतहाशा बढ़ती मरीजों की संख्या दे रही है। चार साल पहले यहां मेमोरियल चिकित्सालय (एफआईएआरटी) में 4

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 11:15 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 06:08 AM (IST)
जिले में बढ़ रहे एड्स रोगी, 250 मरीजों की मौत
जिले में बढ़ रहे एड्स रोगी, 250 मरीजों की मौत

पवन मिश्र, बलरामपुर : जिले में एड्स रोगियों की बढ़ती संख्या ने चिकित्सकों को हैरत में डाल दिया है। हो भी क्यों न, चार साल पहले जहां 43 रोगी पंजीकृत थे, उनकी संख्या बढ़कर 1296 हो गई है। यही नहीं, चार वर्षों में 250 एड्स रोगियों की मौत हो चुकी है। इसके बावजूद स्वयंसेवी संस्थाएं व जिम्मेदार अधिकारी धरातल पर उतरने का नाम नहीं ले रहे हैं। अशिक्षा का दंश झेल रहे जिले के माथे पर एड्स का कलंक मिटने के बजाय दिनों दिन गहराता जा रहा है। परदेश से पैसे कमाने के बजाय लोग बीमारी लेकर लौट रहे हैं। ऐसे आठ मरीज जिला कारागार में भी निरुद्ध हैं।

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प्रतिमाह आ रहे औसतन 20 मरीज : जिले में प्रतिमाह औसतन 20 नए मरीज निकल रहे हैं। इनमें 90 प्रतिशत 30 से 45 वर्ष आयु वर्ग वाले शामिल हैं। जिला एड्स को लेकर कम प्रभावित क्षेत्र माना जाता रहा है। गत चार वर्षो में जिला मेमोरियल अस्पताल में इनकी संख्या बढ़कर 1296 हो चुकी है। सूत्र की मानें तो अधिकतर मरीज मुंबई, दिल्ली, पंजाब व खाड़ी देशों में कमाई कर लौटने वाले हैं।

पांच बच्चे भी हैं पीड़ित : माता-पिता में होने वाली एचआइवी संक्रमण का दंश मासूम बच्चों को भी भुगतना पड़ रहा है। जिले में 10 से 12 साल के पांच बच्चों में एचआइवी संक्रमण की पुष्टि हुई है। पचपेड़वा, उतरौला व बलरामपुर ब्लॉक में एड्स रोगियों की संख्या सबसे अधिक है।

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88 प्रतिशत मामलों में संक्रमण असुरक्षित यौन संबंधों के चलते फैलता है। दूसरा बड़ा कारण नशे का इंजेक्शन लगाना भी है। डॉ. रुचि पांडेय का कहना है कि एड्स का बराबर इलाज किया जाए तो काफी हद तक राहत मिल सकती है, लेकिन अक्सर लोग इसे छिपा लेने का प्रयास करते हैं। मरीजों के साथ ही उनकी ट्रैकिग का सिस्टम होना चाहिए। जिससे उनका लगातार इलाज चल सके।

- रमेश पांडे, केंद्र प्रभारी डॉ. (एफआइएआरटी)


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