फलक छूने का जज्बा, मगर नहीं बिछी शतरंज की बिसात
जिले में खिलाड़ियों की पौध तैयार होने में संसाधनों की कमी सबसे बड़ा गतिरोध है।
फलक छूने का जज्बा, मगर नहीं बिछी शतरंज की बिसात
श्लोक मिश्र, बलरामपुर : जिले में खिलाड़ियों की पौध तैयार होने में संसाधनों की कमी सबसे बड़ा गतिरोध है। हाकी, फुटबाल व ताइक्वांडो में जिले के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर भारत का परचम लहरा चुके हैं। शतरंज का खेल लोकप्रिय तो है, लेकिन इसकी बिसात बिछाने की पहल आज तक नहीं की गई। परिणाम, यह खेल घरों में शौक तक सिमट कर रह गया है। खिलाड़ियों को शतरंज की चाल सिखाने के लिए जिला खेल कार्यालय में कोई सुविधा नहीं है। एक निजी संस्था प्रतिवर्ष शतरंज प्रतियोगिता आयोजित करती है। इसमें प्रतिभाग के लिए खिलाड़ी ढूंढ़े नहीं मिलते। स्कूल-कालेजों में भी इस खेल को अधिक महत्व नहीं मिलता, जिससे यह खेल अपने वजूद को तरस रहा है। स्पोर्ट्स स्टेडियम में इनडोर हाल तो है, लेकिन शतरंज के प्रशिक्षक व संसाधन नहीं हैं। ऐसे में यहां के खिलाड़ी मन मसोस कर रह जाते हैं।