लहरों के दिए जख्मों पर प्रशासन का नमक
नदी किनारे झोपड़ियों मे रहते हैं जबदही गांव के लोग पल-पल सताता है तबाही का डर
बलरामपुर: बाढ़ की विभीषिका में हर साल जिले में 50 से अधिक गांव राप्ती नदी के पानी में डूब जाते हैं। तट पर बसे लोगों के घर व खेतों को नदी लील लेती है। ऐसे में, बेघर परिवार बंधे व सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं। वहीं, प्रशासन मदद के नाम पर उन्हें नमक, लइया, चना, माचिस व मोमबत्ती बांटकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। इनके पुनर्वास के लिए अब तक कोई कवायद नहीं की गई। इससे हर साल ये परिवार आंखों के सामने अपना आशियाना उजड़ता देखने को मजबूर हैं।
तबाही की गोद में कट रही जिदगी:
सदर ब्लाक स्थित राप्ती नदी के कोड़री घाट पर बसे जबदही गांव के लोग सड़क व बंधे के किनारे झोपड़ी बनाकर जिदगी काट रहे हैं। गांव के करीब 100 से अधिक किसानों की जमीन नदी की धारा में समा चुकी है। गांव निवासी रामबदल कहते हैं कि कोड़री घाट पुल बनने के समय खेत का 45 हजार रुपये मुआवजा मिला था। हर साल बाढ़ खत्म होने के बाद सड़क पर झोपड़ी बना लेते हैं।
वहीं, रफीक ने बताया कि करीब 35 बीघा जमीन नदी निगल चुकी है। ऐसे में, मजदूरी कर परिवार का जीवन-यापन करते हैं। सफरुन्निशा का कहना है कि अफसर सिर्फ बाढ़ के समय पूड़ी बांटकर चले जाते हैं। इसके बाद कोई देखने तक नहीं आता। बाढ़ आने पर बच्चों व पशुओं की जान बचाने को ऊंचे स्थानों की ओर भागना पड़ता है। बताया कि पक्के आवास के लिए प्रधान से कई बार कहा गया, लेकिन अब तक अपनी छत नसीब नहीं हो सकी है।
वहीं, महेश का कहना है कि जबदही, टेंगनहिया, सरदारगड़, जमालीजोत, राजाजोत समेत करीब 20 गांवों के वाशिदों के खेत व घर हर साल नदी में समा जाते हैं। जबदही में नदी के मुहाने पर बसे परिवार चार बार कटान के बाद विस्थापित होकर यहां पहुंचे हैं। अधिकांश को पक्का मकान नसीब नहीं हो सका है।
मिलेगी अपनी छत:
अपर जिलाधिकारी अरुण कुमार शुक्ल का कहना है कि पात्रों को आवास दिलाया जाएगा। इसके लिए तहसीलदार व राजस्व अधिकारियों को निर्देश दिए जाएंगे। विस्थापित लोगों को जल्द ही अपनी छत मिलेगी।