सियासत में घुट रही अनाथ मासूमों की सिसकियां
बलरामपुर को जनपद का दर्जा मिले 24 साल बीत चुके हैं। अब तक विभिन्न र

श्लोक मिश्र, बलरामपुर:
बलरामपुर को जनपद का दर्जा मिले 24 साल बीत चुके हैं। अब तक विभिन्न राजनीतिक दलों से विधायक चुने गए, चार नेता मंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं। एक विधायक को कैबिनेट मंत्री बनने का भी गौरव मिला, लेकिन अनाथ मासूमों के सिर पर किसी ने हाथ नहीं फेरा। यहां अनाथ बच्चों के लिए बाल गृह नहीं बन सका है। इस वजह से विभिन्न कारणों से अपने मां-बाप को खोने वाले मासूमों को बाल गृह गोंडा भेजा जाता है। गत वर्ष मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाल सेवा योजना शुरू की, तो आला अधिकारियों ने अनाथ मासूमों के आंकड़े भी जुटा लिए। जिले में दो बार चारों विधानसभाओं में सपा फिर भाजपा के विधायक काबिज हुए। फिर भी अनाथ मासूमों को पुचकारने व आश्रय देने की पहल किसी ने नहीं की। जिले के पिछड़ेपन में यह भी एक अहम मुद्दा है। -जनपद सृजन के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा विधायक हनुमंत सिंह को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। कांग्रेस से डा. विनय कुमार पांडेय कारागार मंत्री बने। 2012 में सपा की पूर्ण बहुमत सरकार में गैंसड़ी विधायक डा. एसपी यादव को भी राज्यमंत्री का ताज मिला। 2017 में भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार में सदर विधायक पल्टूराम को भी राज्यमंत्री का गौरव हासिल हुआ। बावजूद इसके अब तक किसी माननीय की नजर मसीहा को निहारते मासूमों पर नहीं पड़ी। आज भी बड़ी संख्या में अनाथ मासूम अपने रहनुमा की राह देख रहे हैं।
पांच साल में इन मासूमों को मिली गोद:
जिले में 10 परिवार के 27 बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता और पिता में से एक की मौत कोरोना से हुई है। जिले में शून्य से 10 वर्ष के अनाथ बच्चों को बाल गृह गोंडा में भेजा जाता है। 10 से 18 वर्ष आयु के अनाथ बच्चों के संरक्षण की व्यवस्था लखनऊ में है। जिले में विभिन्न कारणों से अपने मां-बाप को खोने वाले मासूमों को जब बाल गृह गोंडा भेजा गया, तो कुछ को सहारा भी मिल गया। दत्तक ग्रहण के नियमों का पालन करते हुए समाज के संभ्रांतजन ने अनाथ मासूमों के सिर पर हाथ फेरा। पांच साल में ऐसे में 16 अनाथ बालक-बालिकाओं को मां-बाप की गोद मिल गई। वर्ष 2017 में एक लड़की को गोद लिया गया। 2018 में सात, 2019 में चार, 2020 में तीन व 2021 में एक अनाथ को गोद लेकर उनकी जिदगी संवारी जा रही है।
बजट के अभाव में नहीं हुआ संस्था का चयन :
बाल कल्याण समिति के चेयरमैन करुणेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि वर्ष 2020 में अनाथ बच्चों को कुछ समय के लिए संरक्षण देने को सामाजिक संस्थाओं से आवेदन मांगा गया था। कुछ संगठनों ने इसमें रुचि भी दिखाई, लेकिन विभाग की ओर से बजट का प्रावधान न होने से मना कर दिया। ऐसी स्थिति में संस्था का चयन नहीं हो सका।
Edited By Jagran