पांच साल बाद बरी हुआ निर्दोष
पुलिस ने जिसे दो किलो चरस बरामदगी के मामले में जेल भेज दिया था। उसे अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पांच साल चार महीने व 139 पेशी का इंतजार करना पड़ा। पुलिस की करतूत से उसे इतने दिन जेल की चहारदीवारी में गुजारनी पड़ी। जबकि पुलिस घटना स्थल की चौहद्दी तक न्यायालय को नहीं बता सकी। जिससे उसका कॅरियर खराब हो गया।
शरद वर्मा, बलरामपुर : पुलिस ने जिसे दो किलो चरस बरामदगी के मामले में जेल भेज दिया था। उसे अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पांच साल चार महीने व 139 पेशी का इंतजार करना पड़ा। पुलिस की करतूत से उसे इतने दिन जेल की चहारदीवारी में गुजारनी पड़ी। जबकि पुलिस घटना स्थल की चौहद्दी तक न्यायालय को नहीं बता सकी। जिससे उसका करियर खराब हो गया।
24 अगस्त को दर्ज कराया था मुकदमा : पचपेड़वा के तत्कालीन थानाध्यक्ष अफसर परवेज, दारोगा ओमप्रकाश, सिपाही बलराम प्रसाद यादव व श्याम प्रकाश ने 24 अगस्त 2014 को क्षेत्र के मजगंवा गांव के पास हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के मणिकर्म थाना क्षेत्र के कसूल गांव निवासी विशाल चौहान को दो किलो चरस के साथ गिरफ्तार किया था। न्यायालय ने 20 अप्रैल 2015 को आरोप का निर्धारण कर मामले का परीक्षण कराया। घटना के संबंध में सात पुलिस कर्मियों का बयान दर्ज हुआ। आरोपित का कहना था कि वह रोजगार के सिलसिले में आया था। पुलिस ने झूठी बरामदगी दिखाकर उसे फंसा दिया। न्यायालय का सवाल था कि जीप नंबर व चरस की माप करने के लिए बांट तराजू कहां से आया, यह पुलिस नहीं बता सकी। पुलिस ने गिरफ्तारी के पहले जामा तलाशी भी नहीं कराई। आरोपित को किसी राजपत्रित व मजिस्ट्रेट के समक्ष भी नहीं प्रस्तुत किया। स्वतंत्र साक्षी भी नहीं है। चरस को घटना के 18 दिन बाद परीक्षण के लिए प्रयोगशाला लखनऊ भेजा। वहीं सभी गवाह पुलिसकर्मी थे, जिनके बयान एक-दूसरे से अलग-अलग थे। वादी मुकदमा थानाध्यक्ष अफसर परवेज घटना स्थल की चौहद्दी तक नहीं बता सके। न्यायालय में कथित आरोपित की 139 पेशी हुई। लेकिन अंत में न्यायाधीश विजय कुमार आजाद ने आरोपित को दोषमुक्त कर दिया। साथ ही पुलिस की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणी भी की।