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असंतुलित होते पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र के भुगतने होंगे गंभीर परिणाम

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By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 06:29 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 06:29 PM (IST)
असंतुलित होते पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र के भुगतने होंगे गंभीर परिणाम
असंतुलित होते पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र के भुगतने होंगे गंभीर परिणाम

जागरण संवाददाता, बलिया: मानव की भोगवादी प्रवृत्ति व विलासितापूर्ण जीवन की लालसा पर्यावरण संरक्षण में सबसे बड़ी बाधा है। प्रकृति प्रदत्त तत्वों का अतिशय दोहन व शोषण संसाधनों को समाप्ति के कगार पर खड़ा कर दिया है। खासकर वनों व वृक्षों की समाप्ति ने जो असंतुलन पैदा किया है उसकी भरपाई कर पाना निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता।

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एक तरफ इसस जहां पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ औद्योगिकीकरण, नगरीकरण एवं मानव की गतिविधियों के चलते पर्यावरण प्रदूषण में तेजी से वृद्धि हो रही है। इससे जल, वायु, ध्वनि, मिट्टी, वायुमंडल आदि सब कुछ प्रदूषित हो चुके हैं। इसके इतर ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप हो रहे जलवायु परिवर्तन से तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसके चलते मृदाक्षरण, भूस्खलन, सूखा, चक्रवात, अति वृष्टि एवं अनावृष्टि जैसी घटनाओं बढ़ रही है। प्राकृतिक आपदाएं हमारा विनाश करने को तत्पर हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण जीवधारियों एवं वनस्पतियों के लिए भी खतरा बढ़ता जा रहा है। इससे फसल चक्र भी प्रभावित हो रहा है एवं कृषि उत्पादकता घट रही है। इससे भविष्य में खाद्यान्न संकट की समस्या उत्पन्न हो सकती है। बलिया सहित पूर्वांचल का पर्यावरण असंतुलित

पूर्वांचल के जिलों का पर्यावरण बेहत असंतुलित है। आजमगढ़, मऊ, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, संतरविदास नगर, मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिलों में कुल भूमि के क्रमश: 0.03, 0.33, 0.01, 0.02, 0.04, 30.0, 0.00, 0.16, 24.140 एवं 47.84 प्रतिशत भूमि पर ही वन क्षेत्र हैं। जबकि पारिस्थितिकी संतुलन के लिए 33 प्रतिशत भूमि पर वन क्षेत्र होना आवश्यक होता है। इस तरह पूर्वांचल में स्थिति बड़ी विकट है। जल संसाधन का आलम यह है कि धरातलीय जल सूख रहा है या नीचे खिसकता जा रहा है। जो पर्यावरणीय ²ष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता।

समझें इसकी महत्ता

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को बचाने का एक मात्र उपाय वनावरण है। बलिया सहित पूर्वांचल के सात जिलों आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी एवं संतरविदासनगर में एक प्रतिशत से भी कम वनावरण है। ऐसे में मानव द्वारा रोपित वृक्षों का विस्तार कर ही पर्यावरण असंतुलन को रोका जा सकता है। एक पर्यावरण संरक्षक होने के नाते इसे बचाने, सुरक्षित एवं संरक्षित रखने हेतु इसे गंभीरता से लेना होगा। तभी पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी में होने वाले असंतुलन पर रोका जा सकता है। न केवल वर्तमान पीढ़ी, बल्कि भावी पीढ़ी के भविष्य को भी सुरक्षित करने के लिए पौधरोपण की महत्ता को समझना होगा और इस दिशा में प्रयास करने होंगे।


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