गंगा दशहरा पर आस्थावानों ने लगाई डुबकी
कोरोना दशहशत और लॉकडाउन के बीच सोमवार को गंगा दशहरा पर हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। करीब 66 दिनों बाद मिली छूट का लोगों ने भरपूर फायदा उठाया और पुण्य सलिला का आचमन कर मंगल कामना की।
जागरण संवाददाता, बलिया : कोरोना के दहशत और लॉकडाउन के बीच सोमवार को हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। करीब 66 दिनों बाद गंगा दशहरा पर लॉकडाउन से मिली मुक्ति का लोगों ने भरपूर फायदा उठाया और पुण्य सलिला का आचमन कर मंगल कामना की।
सुबह से ही नगर के श्रीरामपुर घाट, महावीर घाट, माल्देपुर, संगम आदि घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी। पुराणों में महर्षि भृगु ऋषि की नगरी में गंगा दशहरा के दिन पतित पावनी मां गंगा के पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। यही कारण है कि गंगा दशहरा के दिन जिले के विभिन्न क्षेत्रों से भारी संख्या में श्रद्धालु गंगा स्नान को आते हैं। यही नहीं आसपास के जनपदों से भी सैकड़ों लोग गंगा स्नान करने आते हैं लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से पड़ोसी जनपदों से लोगों का आना कम रहा।
पावन पर्व पर श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई और हवन-पूजन कर मंगल कामना के लिए पतित पावनी से प्रार्थना की। श्रद्धालुओं ने परम्परानुसार तीन कायिक, चार वाचिक और तीन मानसिक अर्थात दस पापों से मुक्ति पाने के लिए दस प्रकार के पुष्पों, दशांग धूप, दस दीपक, दस प्रकार के नैवेद्य, दस ताम्बूल व दस तरह के फलों से गंगा मां का पूजन किया। साथ ही ताप व शाप विमोचन के लिए गंगा में दस डुबकी भी लगाई। पुराणों में गंगा दशहरा का काफी महात्म्य बताया गया है। कहा जाता है कि गंगा दशहरा पर श्रद्धापूर्वक गंगा स्नान करने से मां गंगे समस्त पापों से मुक्त कर देती हैं। गंगा में स्नान करने वालों को न सिर्फ मन की शांति मिलती है, बल्कि मनोवांछित फल भी प्राप्त होता है। इस दिन दान करने का तो खासा महत्व है।
गंगा तट पर लोगों ने ब्राह्मणों को दान भी दिया। माना जाता है कि इस दिन विष्णुपदी, पुण्यसलिला मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। जिले के साहित्यकारों के अनुसार विमुक्त भूमि बलिया में ही गंगा को जाह्नवी नाम मिला था। जिस शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में उलझा कर वेग रोका था उस महायोगी आशुतोष के सती-संताप को जाह्नवी ने इसी पावन भूमि पर हरा था। कलिमलहारिणी, कलुषित गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को ही अयोध्या नरेश भागीरथ के कठिन प्रयास से हिमालय की उपत्यकाओं से निकलकर धरती पर आई थीं और राजा सगर के साठ हजार वंशजों को तारने का काम किया था।