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मजदूरों ने मुफ्त यात्रा की खोली पोल, वसूला गया किराया

गुजरात के राजकोट से 1200 कामगारों को लेकर तीसरी स्पेशल ट्रेन शनिवार को यहां पहुंची। इसके पूर्व भी दो स्पेशल ट्रेनों से जिले के अलावा पड़ोसी जनपदों के करीब तीन हजार श्रमिक आ चुके हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 May 2020 06:04 PM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 06:05 AM (IST)
मजदूरों ने मुफ्त यात्रा की खोली पोल, वसूला गया किराया
मजदूरों ने मुफ्त यात्रा की खोली पोल, वसूला गया किराया

जागरण संवाददाता, बलिया: गुजरात के राजकोट से 1200 कामगारों को लेकर तीसरी स्पेशल ट्रेन शनिवार को यहां पहुंची। इसके पूर्व भी दो स्पेशल ट्रेनों से जिले के अलावा पड़ोसी जनपदों के करीब तीन हजार श्रमिक आ चुके हैं। कामगारों की सुविधा के लिए जिला प्रशासन पहले से ही काफी मुस्तैद था। स्टेशन परिसर में ही सभी यात्रियों की जांच व खान-पान की व्यवस्था की गई थी। वहीं ट्रेन से उतरने के बाद प्रवासी मजदूरों ने आपबीती सुनाई तो लोगों के होश उड़ गये। हालांकि यात्रा के दौरान मिलने वाली सुविधाओं का बखान भी किया लेकिन इसके पूर्व राजकोट पुलिस द्वारा की गई वसूली को मजदूरों ने बेबाकी के साथ बयां किया। कहा कि वहां की पुलिस ने स्टेशन पहुंचने से पूर्व ही सभी यात्रियों से किराया के नाम पर प्रति व्यक्ति 725 रुपये की वसूली कर ली थी।

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सरकार द्वारा निशुल्क यात्रा की बात बताने पर यात्रा से वंचित करने की धमकी भी दी गई। किराया वसूलने को लेकर जब कई यात्रियों से पूछा गया तो सभी ने इसको रेखांकित किया।

-कुशीनगर निवासी हरेराम राजभर ने बताया कि एक तो महीनों से काम बंद था। खाने को लाले पड़ गये थे। सरकार द्वारा मुफ्त सेवा देने की घोषणा के बाद भी पुलिस द्वारा किराया वसूला गया। जो जले पर नमक छिड़कने जैसा था।

-तईबपुर (कुशीनगर) निवासी मनोज कुमार जो राजकोट में सर्जिकल लाइन में काम करते थे। बताया कि महीनों से कंपनी बंद है। किसी प्रकार वहां रह रहे थे। सरकार ने जब गृह जनपद भेजने की घोषणा की तो काफी राहत मिली लेकिन पुलिस ने किराया वसूल कर जख्म को ताजा कर दिया।

-भदोही जनपद के राघोपुर निवासी अजीत कुमार का कहना था कि लॉकडाउन के बाद काम-धंधा पूरी तरह बंद हो गया। जो कुछ था वह घर खर्च चलाने में खत्म हो गया था। पुलिस द्वारा 725 रुपये की मांग करने पर उधार लेकर भरना पड़ा। यदि पैसा नहीं देते तो शायद घर नहीं आ पाते।

-रेवती निवासी विजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि वहां राजमिस्त्री का काम कर परिवार का भरण पोषण चलाते थे। करीब चालीस दिन से काम बंद था। ठेकेदार भी पैसा नहीं दिया। जैसे-तैसे दिन काटे हैं। जो बचा था वह किराये में चला गया। अब गांव जाकर क्या करेंगे इसकी चिता खाये जा रही है।

-श्रीपतपुर मठिया निवासी मनोज साहनी का दर्द कुछ अलग ही था। बताया कि वेल्डिग का काम कर किसी तरह जीवन यापन चला रहे थे। काम पहले ही बंद हो गया था। वहीं स्थानीय पुलिस का गैर प्रांतवालों से व्यवहार भी ठीक नहीं था। घर पहुंच गये काफी राहत महसूस कर रहे हैं।

-जौनपुर के विजय पाल का कहना था कि पेट की आग व जिम्मेदारी ने परिवार से हजारों मील दूर कर दिया था। लॉकडाउन घोषित होने के बाद घर लौटने की उम्मीद ही छोड़ दिये थे। सरकार ने पहल कर काफी मदद किया है। हालांकि वहां की पुलिस सरकार की मंशा पर पानी फेर रही है।

-महोबा के गंगाचरण जो फाइबर कंपनी में काम करते थे बताया कि काम बंद होने के बाद मालिक ने कुछ दिनों तक खाने पीने की व्यवस्था की लेकिन बाद में पल्ला झाड़ लिया। यहां तक कि मेहनताना भी नहीं दिया। पैसा न होने से काफी दिक्कत उठाना पड़ रहा था। वहीं किराया वसूल कर परेशानी और बढ़ा दी गई।


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