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संभावनाएं अपार फिर भी हस्तशिल्प के क्षेत्र में पिछड़ा जनपद

संभावनाएं अपार फिर भी हस्तशिल्प के क्षेत्र में पिछड़ा जनपद

By JagranEdited By: Published: Wed, 26 Feb 2020 08:33 AM (IST)Updated: Wed, 26 Feb 2020 08:33 AM (IST)
संभावनाएं अपार फिर भी हस्तशिल्प के क्षेत्र में पिछड़ा जनपद
संभावनाएं अपार फिर भी हस्तशिल्प के क्षेत्र में पिछड़ा जनपद

अजित पाठक, बलिया

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हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही हैं। इस क्षेत्र से जुड़े लोगों को हुनरमंद बनाने को लेकर सरकार फिक्रमंद भी है। परंपरागत व्यवसाय की बारीकियों से अवगत कराकर उसे विकसित करने के लिए विभिन्न प्रकार के जतन भी किए जा रहे हैं। इसके बावजूद हस्तशिल्प के मानचित्र में काफी उर्वरा क्षेत्र होने के बाद भी जिले आज तक उपेक्षित है। अफसोस इस बात का है कि हस्तशिल्प के क्षेत्र में अपार संभावनाएं मौजूद होने के बाद भी शासन-प्रशासन का ध्यान इधर नहीं है। लिहाजा यहां के कामगारों को इस विधा को विस्तारित करने का मौका नहीं मिल पा रहा है। आलम यह है कि आजमगढ़ मंडल में हस्तशिल्प अनुभाग का एक कार्यालय तक मौजूद नहीं है। ऐसे में न तो इसके उत्थान का सपना सच साबित हो पा रहा है और ना ही लोगों को संबंधित योजनाओं की जानकारी मिल पा रही है।

सरकारी प्रयास के बाद भी यहां के हस्तशिल्पियों को योजनाओं का लाभ न मिलने से यह व्यवसाय आज अपने अस्तित्व से जूझ रहा है। जनपद के हस्तशिल्पियों द्वारा सिंहोरा, टोपी, मौर, कढ़ाई, बुनाई, दरी निर्माण, बांस व लकड़ी के खिलौने सहित अन्य सामान बनाए जाते हैं। वर्तमान में जिले में लगभग 400 नियमित कामगार हस्तशिल्पी हैं। इसके अलावा कुछ विशेष सीजन व आर्डर पर काम करने वालों की संख्या भी अच्छी खासी है। फिर भी सही देख-रेख के अभाव में योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। वहीं शासकीय सुविधाओं के अभाव में न सिर्फ हस्तशिल्प हतोत्साहित हैं, बल्कि इसकी प्रगति रिपोर्ट भी काफी निराशाजनक है। यदि इसे शासन प्रदत्त संजीवनी मिले तो इसकी रूपरेखा बदलते देर नहीं लगेगी। अपनी पहचान के लिए जूझ रहे हस्तशिल्पी

गौर करने वाली बात यह है कि जिले में हस्तशिल्पियों के रजिस्ट्रेशन की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में जनपद के सैकड़ों परिवार जो विभिन्न हस्तशिल्प कारोबार से जुड़े है अपनी पहचान तक कायम नहीं कर पाए हैं। वहीं मंडल में हस्तशिल्प का कोई कार्यालय नहीं होने से पड़ोसी जनपदों के भी हजारों कुशल हुनरमंदों को कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है। व्यवस्था की कमी से वे अपने हुनर को नया अयाम नहीं दे पा रहे हैं, जबकि यदि इसे तरक्की के पंख लगे तो यहां के बेरोजगार ऊंची उड़ान तो भरेंगे ही रोजगार सृजन का नया क्षितिज भी उदय हो सकेगा।

जनप्रतिनिधियों ने की उपेक्षा

अमूमन विकास एवं विकासपरक योजनाओं का जिक्र करने वाले जनप्रतिनिधियों ने भी कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। यदि किसी जनप्रतिनिधि ने इसकी व्यापकता को ध्यान में रखकर पहल की होती तो आज जनपद में हस्तशिल्प वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका होता। इससे जहां एक तरफ हस्तशिल्प की चहुंओर गूंज होती, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिक भी इससे जुड़कर अपनी रोजी-रोटी चला रहे होते। ऐसे में इस कार्यक्रम को ठोस प्रशासनिक पहल की दरकार है ताकि हस्तशिल्पियों की जूझती जिदगी को नया सवेरा मिल सके। इस कारोबार से जुड़े हैं लोग

जिले में विभिन्न क्षेत्रों में मोची, टोकरी बुनकर, जर्री-जरदोज, मिट्टी व लकड़ी का खिलौना, सिंहोरा, टोपी, मौर, कढ़ाई-बुनाई, दरी निर्माण व बांस निर्मित सामान बनाने का काम किया जाता है। शासनादेश के अनुसार ये सारे काम हस्तशिल्प के अंतर्गत रखे गए हैं, लेकिन सहयोग के अभाव में इस क्षेत्र से जुड़े लोगों के सामने जीविकोपार्जन के लाले पड़े हैं। ''अभी तक जिले के हस्तशिल्पियों की वास्तविक गणना नहीं हो पाई है। इस संबंध में उच्चाधिकारियों से बात की गई है। बनारस स्थित कार्यालय से भी बात हो गई है। मार्च माह के बाद कैंप लगाकर हस्तशिल्पियों की न सिर्फ पहचान की जाएगी, बल्कि उन्हें पहचान पत्र भी जारी किया जाएगा। उसके बाद ऐसी स्थिति नहीं रहेगी। उनको भी विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलेगा।''

-राजीव पाठक, उपायुक्त, जिला उद्योग केंद्र।


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