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ददरी मेले में दिख रही लघु भारत की तस्वीर

जागरण संवाददाता बलिया ददरी मेला अपने आप में अनोखा और अलबेला है। मेले में एक तरफ देसी सा

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Nov 2021 06:47 PM (IST)Updated: Fri, 26 Nov 2021 06:47 PM (IST)
ददरी मेले में दिख रही लघु भारत की तस्वीर
ददरी मेले में दिख रही लघु भारत की तस्वीर

जागरण संवाददाता, बलिया : ददरी मेला अपने आप में अनोखा और अलबेला है। मेले में एक तरफ देसी सामानों की दुकानें पुरानी परंपरा की ओर ध्यान ले जा रहीं हैं, वहीं मीना बाजार में सौंदर्य प्रसाधन, खिलौने और आधुनिक घरेलू सामानों की दुकानें मन को आधुनिक बना रहीं हैं। शहर से सटे लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में 29 हेक्टेयर जमीन पर लगे ददरी मेले में लघु भारत की तस्वीर दिख रही है। मेले में कई स्थानों के दुकानदार पधारे हैं। कानपुर से खजला वाले आए हैं। सहारनपुर के व्यवसायी काष्ठ कला की दुकान सजाए हैं। बिहार के दुकानदार कंबल व ऊनी वस्त्र की दुकान किए हैं। मेले में कई जनपदों से आए दुकानदारों की लगभग 500 दुकानें सजीं हैं। हरेक माल पांच रुपये, 10 रुपये, 20 रुपये, 40 रुपये और 100 रुपये की दुकानों पर भी भीड़ कम नहीं हो रही। यहां कई तरह के सामान हैं, लेकिन उनकी कीमत एक है।

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दिन के 11.30 बजे हैं। ददरी मेले में दूर-दराज के लोग भी विभिन्न प्रकार के वाहनों से पहुंचने लगे हैं। शादी वाले घरों के लोग अपनी लिस्ट के अनुसार खरीदारी कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि उनके इलाके में ये सामान नहीं मिलेंगे, लेकिन मेले से सामान खरीदने के पीछे उनका तर्क है कि यहां सामान कुछ सस्ता है। सिकंदरपुर से मेले में अपने मित्रों के साथ पहुंचे अरविद सिंह ने बताया कि इस मेले में हर साल आता हूं। मेले में बिकने वाले कुछ सामान ऐसे होते हैं, जो गांव की तरफ अब नहीं मिल पा रहे। जैसे कुदाल, हसुआ, खुरपा, बेल्चा, रम्मा, टांगी व पशुओं को बांधने वाला रस्सी, जाड़े के लिए देसी कंबल आदि। बहुत से लोग अपने बच्चों को भी मेले में घुमाने लाए थे। बच्चे काफी खुश नजर आ रहे थे। बातचीत में बच्चों ने कहा कि मेला हमेशा ऐसे ही रहना चाहिए। कभी खत्म नहीं होना चाहिए। दरअसल मेले में चरखी, सर्कस, ड्रेगन झूला, ब्रेक डांस झूला आदि बच्चों की पहली पसंद बनी हुई है। मौत के कुंआ अभी लगने वाला है। मिठाई की दुकानों पर गुड़ की जलेबी का स्वाद लोग जरूर ले रहे हैं। मीना बाजार में महिलाएं भारी संख्या में पहुंच रहीं हैं।

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भीड़ के अनुपात में नहीं हुआ इंतजाम

: मेले में प्रति दिन लगभग 30 हजार लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन नगरपालिका की ओर से उस अनुपात में इंतजाम नहीं किए गए हैं। मेले में तो स्वच्छता का ध्यान रखा गया है, लेकिन मेले से बाहर आने पर गंदगी का अंबार भी दिखने लगता है। नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी दिनेश विश्वकर्मा ने बताया कि मेले में 50 शौचालय, दो मोबाइल शौचालय, पांच टैंकर पानी की व्यवस्था की गई है। सफाई और फागिग भी प्रतिदिन कराई जा रही है।

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भारतेंदु मंच को तैयार करने के कार्य में जुटे कारीगर : मेले के बीच में भारतेंदु मंच तैयार किया जा रहा है। कई कारीगर उसमें लगे हैं। यह वही मंच है जहां गुलामी के दौर में इस मेले में आए भारतेंदु हरिश्चंद्र के चितन की झलक दिखती है। इस मंच पर वर्ष 1884 में भारतेंदु हरिश्चंद्र पहुंचे थे। तब से यह मंच उनके नाम ही समर्पित रहता है। इस मंच पर 28 नवंबर को सत्संग, 30 नवंबर को कौव्वाली, दो दिसंबर को मुशायरा और पांच दिसंबर को कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन होना है। कार्यक्रमों के बाद 11 दिसंबर को ददरी महोत्सव का आयोजन होगा और उसके बाद 13 दिसंबर को मेले का समापन हो जाएगा।

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जिला केशरी दंगल प्रतियोगिता आज

: मेले में 27 नवंबर को जिला केशरी दंगल प्रतियोगिता का आयोजन होना है, इसमें पूर्वांचल के कई जिलों के पहलवान भाग लेंगे। बिहार से भी पहलवान पहुंचेगे। पहलवानों के दांव देखने के लिए लोग बेताब हैं। प्रतियोगिता में पहलवान एक तरह से अपने-अपने जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिला केशरी का ताज जिसे मिलता है वह पहलवान पूर्वांचल का नंबर वन पहलवान माना जाता है। पहलवानों के जरिए संबंधित जनपद की पगड़ी भी दांव पर होती है। इसलिए भारी संख्या में संबंधित जनपदों के लोग भी यह दंगल देखने और अपने पहलवान का हौसला बढ़ाने के लिए पहुंचते हैं। इस मौके पर प्रशासन को भी काफी चौकन्ना रहना पड़ता है।


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